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एक छोटी सी बैठक

एक छोटी सी बैठक है

बहुत बड़े और ऊंचे 

कद वाले लोगों की,

जिनके उधार पे है ये

दुनिया चल रही,


जो अपने कंधों पे

बिठा के दुनियां 

को ऊंचाई पे ले चले,

जिनका चाह के भी कभी

दिया जा सकता भत्ता नहीं,


जो दुनियां में हो के 

सिर्फ दुनिया के लिए जिए,

मानता हूं जिनको मैं

संतो, महंतों, भिक्षुओं से ऊपर

जो छोड़ के निकलते है घर

सिर्फ अपनी मुक्ति के लिए,


जिन्होंने जिज्ञासा को

ही हर घड़ी परम माना,

जिन्होंने सत्य को खोजने

को ही अपना धर्म जाना,

और जो चलते रहे सब त्याग

अकेलेपन की अंधेर गलियों से

आने वाले युगों के सूरज के लिए,


वो पर्वत श्रृंखलाओं से,

आज भी हमारे बीच खड़े है,

और मुझ जैसे लोग

धूल के जैसे उनके पांव में पड़े हैं,

हाथ उठाए हुए, 

झोली फैलाए हुए,

चांद तारों से ये गुजारिश करते हुए,


हमें भी कोई बल दो, बुद्धि दो,

मस्तिष्क में भुजाओं में

हमारे भी वो शक्ति भर दो,

ता के जिनके कुनबे के

हो गए हैं हम चलो 

जन्म से ना सही करम से ही,

उन को और कुछ नहीं,

कर सकें हम फूल ही अर्पण दो।

जाना कहां हैं

 हर कोई जल्दी में है

पर किसी को मालूम 

नहीं जाना कहां हैं,

हर किसी के हाथ में है

तीर कमान पर किसीं को

मालूम नहीं निशाना कहां है,


ये दौलत की भूख,

ये शौहरत की हवस,

लोग कर रहें है सब 

कुछ न कुछ देखा देखी बस,

कोई सोचता नहीं 

जा रहा जमाना कहां है,


दिल दुखता है जो हो रहा 

बहुत कुछ उस में से देख के,

दम घुटता है जब कभी

खुद भी पड़ जाते हैं

जो चल रहा है उसके सामने

मजबूरन घुटने टेकने,

कर लिया है किनारा शायद

इसी लिए, पागल जिसके लिए 

अमूमन सारा जहां है,


ये नहीं हमको के आगे बढ़ना नहीं,

दुनिया के साथ हमको चलना नहीं,

पर ना हो जो सलीका, अदब, तहजीब,

ऊपर से चमक अंदर खाली जो चीज

उसको तो कह नहीं सकते हम ठीक,

चाहे लाख कहे कोई तुमको हो

आता दुनिया से निभाना कहां है,


मैं तो अपने आप को आहिस्ता कर रहा हूं,

ये झूठ ये तिलिस्म ये फरेब ये जालसाजी

से रोज थोड़ा थोड़ा अलहिदा कर रहा हूं,

तय कर रहा हूं अपने मनसूबे अपनी मंजिले,

और उसी तरफ बढ़ रहा हूं मुझे

सच्च में जहां पे होना चाहिए,

मुझे सच्च में जाना जहां है।

दोस्तो

दोस्तो कोई तो राह निकालें, 

ग़ैरों के हाथ ज़िन्दगी दे 

अपने दिन नहीं बदलने वाले,


दोस्तो हमीं तो हैं ये कारखाने 

ये दफ्तर, ये mill, ये फैक्टरी 

चलाने वाले, रातों को अपना 

पसीना बहा कर, तमाम जरूरत 

और सहूलत के सब सामान 

त्यार करने, बनाने वाले,


दोस्तो अब हमें उठना होगा

बढ़ना होगा, दाओ लगाना,

खेल को समझना, परख 

के खेलना, खेल के गिरना, 

गिर के उठना संभलना,

आगे बढ़ के अपने नाम 

का सिक्का चलाना होगा,


दोस्तो चलो एक मुट्ठी 

हो जाएँ, मिलें जो कभी 

बस अपने अपने दुःख 

ही ना रोएं, एक नयी सुबह

के आगाज़ के लिए 

कुछ अपने मनसूबे बनाएं,


और चल पड़ें उन बुलंदिओं

की तरफ, जहाँ तक इन 

बंदिशों में खाब तक न देख पाएं,


यक़ीन मानो दोस्तो हम में

हैं हुनर के हम ये घुटे घुटे 

दिनों से निजात पा के 

अपनी मर्ज़ी की मंजिल 

चुन सकें, पा सकें और 

अपनी मर्ज़ी की ज़िन्दगी जी पाएं!

कुछ न कर सके

आपके लिए फ़िक्र 

के अलावा हम 

कुछ और न कर सके,


आप हमें बेसहारा 

छोड़ के ना जाएँ

चाँद तारों से गुज़ारिश

के सिवा हम कुछ 

और न कर सके,


खुली आंखों से देख 

रहे थे एक हादसा

यकीनन होने को है,


वो जिनकी निगहबानी में 

चलते हैं बेख़ौफ़ 

हम उनकी सरपरस्ती 

खोने को हैं,

    

मैंने आपसे भी

कुछ कुछ मिन्नतें की

और भी जो रास्ते 

मुमकिन थे उनकी 

आपके सामने पेशकश की,


मैंने हुकमरानों को

हमारे खस्ता हालत की 

इतितलाहें की 

कुछ तो निज़ाम को बदलो

लिख लिख के खत 

सिफ़ारिश की मिन्नतें की, 

 

पर हर सदा हर दुहाई 

पत्थरों से टकरा के 

जैसे वापिस लोट आई

ग़ैर मुल्की हो जैसे हम 

नहीं हुई कोई सुनवाई,


और अब के जिस नई 

सुबह के आगाज़ के लिए 

हमने दिन रात एक किया था  

जिन खाबों की तामीर 

के लिए हमने अपनी 

साँसों को मेहनत 

की भट्टी में झोंक दिया था,


वो सब अब जैसे 

दम तोड़ने को हैं

पालने से उतर के 

जिन्होंने अभी चलना 

तक न सीखा था  

साथ मारा छोड़ने को हैं,


और ये अंधेरगर्दी, 

हुक्मरानों की मदमस्ती,

मैं जानता हूँ 

अभी कम नहीं होने वाली

चाहे कितने भी मसीह 

सलीब पे चड़ें

ये दुनिया बदलने नहीं वाली,


इस गम-ग़ाज़ीदा 

सहर को शब् को 

गले लगा, दो आंसू 

बहा हम सो जाएंगे,

फिर अपनी मजबूरियों की 

खातिर कल यहीं आएंगे,


और मुझे मालूम है 

और भी हादसे होंगे 

इसी तरह से आगे भी, 

और ये भी तय लगता है 

तब हम कुछ न कर सकेंगे

फिर वही मिन्नतें गुज़ारिशें 

इस से आगे न बढ़ सकेंगे, 


चलो आप जाएँ 

इस ज़िंदाँ से दूर 

जहाँ तरक्की पसंद 

हुनरमंद लोगों का 

एहतराम हो,

जहाँ उम्मीद से सुबह हो 

जहाँ ख़ुशी से शाम हो,


फ़िक्र न करना हमारे 

खस्ता हालातों की

हमको आते हैं 

अपने रास्ते ढूंढ़ने

और पा ही जाएंगे 

कोई दयार तो 

जहां कदर हो कीमत हो 

हुनर की हयात की 

ख्याल की जज़बात की,


बस रह जाएगा एक 

मलाल तो ये के 

आपके लिए फ़िक्र 

के अलावा हम 

कुछ और न कर सके!