हश्र

तुम्हें खबर नहीं है ऐ इंसानो,

किस अँधेरे की तरफ बड़े जा रहे हैं हम,

हश्र यूं लगता है जल्दी आएगा ,

अपने कर्मो के फल पाने वाले है हम,


चंद लोगों की मुट्ठी में 

सिमट रहा है दौलत का समन्दर,

और समंदर भर लोग,

घुट घुट के जी रहे हैं अंदर ही अंदर,


दूभर हो रहा है दिन-ब-दिन 

रहने के लिए एक छत्त जोड़ पाना,

और हिल गयी है बुनियाद जीवन की,

पुराने का जाना नए का आना,

 

मैं नक्शा देखता हूँ जब भी,

तन्हाईओं का तस्सवुर नज़र आता है उस में,

बस अपनी जियो और खत्म करो

यही मंज़र नज़र आता है हर शख़्स की आँखों में,


हमको कोई कुदरती आफत या 

कोई इस ग्रह के बाहर की ताकत नहीं मारेगी,

ये नसल इंसानो की देखना

चंद लोगों की हविस के आगे हारेगी,


धरती के आखिरी इंसानों के नाम 

अपने रहते हुए ये खत छोड़े जा रहा हूँ,

मैंने देख लिया था विनाश आते,

पर कुछ कर न सका हाथ जोड़े जा रहा हूँ!

No comments:

Post a Comment