एक छोटी सी बच्ची
जैसे खिलखिला रही थी,
बारिश के पानी के
से बने छोटे से गड्ढों में,
उछल उछल के
जैसे छपाके लगा रही थी,
अपनी कुर्सी पे बैठे बैठे,
नीम के पेड़ पे डाली
हुई, पींग जोर जोर से
जैसे झूले जा रही थी,
गीत जो उसको कभी
कोई जवानी में सबसे
अच्छा लगा होगा,
मन ही मन जैसे वो
गाए जा राह थी,
अपने बच्चों को
जो गा के लोरियाँ
किया होगा उसने बड़ा,
जेहन में उसके जैसे सब
लौट के आ रहा थी,
बड़ों दिनों के बाद
उन्हें देख के ऐसे लगा
किसी ने छोड़ दिया हो
गला, और खुल के
वो जैसे सांस ले पा रही थी,
मुरझा सी गई थी
जैसे उन में ज़िंदगी,
आज देख के लगा
के जैसे उनमें फिर से
जान वापिस आ रही थी,
फिकर उनसे चली
गई हो जैसे कोसों दूर,
उम्मीद उन्हें ज़िंदगी
के लिए फिर से जैसे
नजर आ आ रही थी,
एक अंधेरी तूफानी
खौफनाक, आंधी,
तूफान वाली रात
हो गई हो खत्म,
और दूर क्षितिज पे
सुबह होने जा रही थी,
अच्छा तो नहीं होता
अपने हमदर्दों का
यूं अचानक से
साथ छूट जाना,
पर उनको सुकून में
देख के अपनी फिकर
कम सता रही थी,
ज़िंदगी में हसीं
खुशी, सुकून,
चैन, से बढ़ के
और कुछ भी नहीं
कायनात उनके जरिए,
जैसे मुझे पे भी ये
भेद खोले जा रही थी,
एक छोटी सी बच्ची
जैसे खिलखिला रही थी।
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