खुरदुरी दीवारों
को वो रेगमाल
से स्पॉट करके
पुताई करते रहता,
सुबह शाम फूँकता
रहता था बीड़ी,
बीच में कभी कभी
गुनगुना लेता,
मैं खड़ा वहाँ,
धुएँ में खांसते हुए
देखता रहता,
शायद अपने
इलाज के लिए!
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