तबियत का बड़ा ही है वो नासाज़ आदमी,
बोलता है हस के पर है वो चालबाज आदमी,
क्या बताएं कैसी कैसी बे बुनियाद बातें करता हैं,
मुझे तो लगता है अक्ल का है वो खराब आदमी,
आज कुछ, कल कुछ, सामने कुछ, पीछे कुछ,
ऐसा है जमीर और जेहन का वो बीमार आदमी,
उसके तो घर के अब नहीं करते उसका यकीन,
मैं फसा उसके झांसे में बेबस मोहताज आदमी,
आज भी सपनों में खौफ बन के आ जाता है वो,
राधे राधे करता हुआ शकुनि सा दिमाग आदमी!
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