इतना दियो हो साहिब जी,
अब रक्खा न जाए संभाल कर,
निर्धन को राजा कर दियो,
प्रेम का मोती झोली डाल कर,
इतना दियो हो साहिब जी...
तुझको ही भजती रहती दिन रात,
मन ही मन करती रहती तुझसे बात,
लगता के जैसे तुम बुला रहे,
जब चिडिया कोई बोले डाल पर,
इतना दियो हो साहिब जी....
अब मन में मोरे कोई दुविधा नहीं,
अब जियरा को भी कोई चिंता नहीं,
जानूं लगा दोगे पार बांह पकड़ कर,
चलती हूँ आश्वस्त हो हर राह पर,
इतना दियो हो साहिब जी....
तोहरी करुणा का पातर बनी रही हूँ,
बस इतनी ही तो से मैं विनती करूँ,
रहना यूं ही तुम हर दम अंग संग मेरे,
छोड़ न जाना मुझे मेरे हाल पर,
इतना दियो हो साहिब जी....