दो बातें की हैं बस
उससे हस के,
चाहने लगी है इतना
मुझे वो अभी से,
मुझसे कभी कोई
भूल न हो,
माँगता हूँ इतना मैं
अपने रब से,
उसकी बातों से
लगता है,
उसने सब मुझपे
अपना वार दिया है,
मेरी जीत के लिए,
अपना सब कुछ
उसने हार दिया है,
मैं जीत के सब खुशियाँ
ला रख दूँ
उसके कदमों में,
माँगता हूँ हुनर
इतना बस अपने रब से,
अपना घर, गाओं,
गलियाँ, रिश्ते
नाते छोड़ के
सब पीछे,
वो बड़ी चली
आ रही है,
नदी पर्वत से नीचे,
मैं सागर सी
बाहों सा उसको
दे प्यार सकूँ,
रब्ब मुझको
इतनी शक्ति दे,
जितना सोचा था,
जितना चाहा था,
वो है कहीं
ज्यादा उस सभ से,
उसको भी मिले
जितना उसने चाहा हो
कहाँ ज्यादा उससे,
मुझको उसके
पाऊँ की ज़मीन,
उसके सर का
आसमान कर दे,
इतना माँगता हूँ
अपने रब से!
उससे हस के,
चाहने लगी है इतना
मुझे वो अभी से,
मुझसे कभी कोई
भूल न हो,
माँगता हूँ इतना मैं
अपने रब से,
उसकी बातों से
लगता है,
उसने सब मुझपे
अपना वार दिया है,
मेरी जीत के लिए,
अपना सब कुछ
उसने हार दिया है,
मैं जीत के सब खुशियाँ
ला रख दूँ
उसके कदमों में,
माँगता हूँ हुनर
इतना बस अपने रब से,
अपना घर, गाओं,
गलियाँ, रिश्ते
नाते छोड़ के
सब पीछे,
वो बड़ी चली
आ रही है,
नदी पर्वत से नीचे,
मैं सागर सी
बाहों सा उसको
दे प्यार सकूँ,
रब्ब मुझको
इतनी शक्ति दे,
जितना सोचा था,
जितना चाहा था,
वो है कहीं
ज्यादा उस सभ से,
उसको भी मिले
जितना उसने चाहा हो
कहाँ ज्यादा उससे,
मुझको उसके
पाऊँ की ज़मीन,
उसके सर का
आसमान कर दे,
इतना माँगता हूँ
अपने रब से!