आदमी मैं बुरा कभी भी नहीं था,
बस मैंने उछल के छूना चाहा आसमान,
और मैं हर बार रहा नाकामयाब,
और मुझे ले डूबा ये जिल्लत-ऐ-एहसास,
के यह दुनिया अपने लिए नहीं है,
पर हाय मैंने कभी ये क्यों ना सोचा,
के कोशिश करना हार जाना जीत जाना,
और गिर के फिर संभल के खड़े हो जाना,
इसी का नाम ही तो जिंदगी है!
बस मैंने उछल के छूना चाहा आसमान,
और मैं हर बार रहा नाकामयाब,
और मुझे ले डूबा ये जिल्लत-ऐ-एहसास,
के यह दुनिया अपने लिए नहीं है,
पर हाय मैंने कभी ये क्यों ना सोचा,
के कोशिश करना हार जाना जीत जाना,
और गिर के फिर संभल के खड़े हो जाना,
इसी का नाम ही तो जिंदगी है!