तुम बताओ, क्या करोगे?

दुनिया तो,
देखेगी,
सोचेगी,
परखेगी,

चुप नहीं
रहेगी,
बोलेगी,
बातें करेगी,

अपने काम
से कभी,
काम नहीं
रखेगी,

तुम बताओ,
क्या करोगे?

बदलोगे,
अनसुना करोगे,
या लड़ोगे,

कौन से,
रस्ते पे
चलोगे!

जीना है तो कीमत चुकानी पड़ेगी

जीना है तो कीमत चुकानी पड़ेगी,
अपनी मर्जी मनमानी नहीं चलेगी!

चूल्हा जलता रखने के लिए घर का,
खाब की लकड़ी तक जलानी पड़ेगी!

बिन यारम के सर्द ठंडी है हर रात,
आह के अंगारे से देह सुलगानी पड़ेगी!

वो बात जो सोचा था किसी से न कहेंगे,
इलाज़ चाहिए तो नब्ज़ दिखानी पड़ेगी!

नहीं मिला हाथ वो जो चाहिए था तो क्या,
जो मिले उसी को उंगली थमानी पड़ेगी!

मोहब्बत में जबरदस्ती नहीं ठीक

एक बार मैंने पूछा था उससे,
क्या तुम मेरे साथ मेरे घर पे रहोगी,
उसने मना कर दिया था,
ये कहके मुझे आसमानो में उड़ना है,

और अब मैं घंटो बैठा रहता हूँ,
उसके इंतज़ार में लेके रोटी और बीज,
अपनी मर्ज़ी से जब जी चाहे आती है,
कभी कभी तो नहीं भी आती,

मैं भी अब यही सोचता हूँ,
अच्छा किया जो जबरन पकड़ के
पिंजरे में नहीं डाला,
मोहब्बत में जबरदस्ती नहीं ठीक!

सरकारी अस्पताल, एमरजेंसी वार्ड, एक वाकया

जल्दी उठाओ इस लाश को,
जल्दी बिस्तर खाली करो,
अरे कह रहा हूँ वक़्त न लगाओ,
इसे जल्दी यहां से हटाओ,

कराह उठा वो, यूं बात न करो,
कोई मरा है जस्बात को समझो,
क्या तुम इतने पत्थर हो गए हो?
दर्द समझना भी भूल गए हो?

खींच के उसको वो वार्ड से बाहर,
हाल में ले गया, और कहने लगा,
देख रहे हो कितनी भीड़ है यहाँ,
इन में से किसी के वास वक़्त नहीं है,

मझे फिकर है कोई और लाश न हो,
वक़्त के हाथों एक और मात न हो,
पत्थर नहीं, दर्द भी समझता हूँ,
पर मेरा फ़र्ज़ है जितने हो सके बचाऊँ,

इसी लिए कहता हूँ, जल्दी बिस्तर खाली करो...



टक से चलता है छुरा

टक से चलता है छुरा,
सिलवटे पे एक खून की,
लकीर सी खिंच जाती है,

जैसे आ जाती है कागज़ पे
सियाही की एक लकीर,
झटके से पैन छिड़कने पे,

और मैं अब भी उस
गली से गुज़र नहीँ पाता हूँ,
चाहे अब उतना नहीं घबराता हूँ,

बुहत छोटा था तब मेरे
दिल में ये डर बैठ गया था,
उसकी लाल आँखे देख के,

के जिस दिन सारी मुर्गियाँ
खत्म हो जाएंगी इसकी,
उस दिन इसी छुरे से
ये मेरी भी गर्दन कलम कर देगा!

अपने ही तोते की, उसने गर्दन मरोड़ दी

कल अपने ही तोते की,
उसने गर्दन मरोड़ दी,
हाथ से जिसे खिलाता था,
वो सूरजमुखी के बीज,
चूरी और लाल मिर्ची,

कहने लगा, ये झूठ
बोलता रहा मुझसे,
किसी को कोई गिला नहीं,
घर पे सब है ठीक,

मेरे ऐतबार का इसने
कत्ल है किया, कभी
मुझे सच्च न बताया,
गाता रहा खुशामद के गीत,

मेरी दुनिया उजड़ गई,
इसने परवाह ना की,
नामुराद था कम्भख्त,
नमक की कीमत तक अदा न की।

पापी पेट के लिए, सब कुछ करना पड़ता

कल मैंने छत्त पे बैठे
कौऐ से पूछ ही लिया,
ये सच्च है न तुम्हे भी
किसी के आने का,
कुछ पता नहीं रहता,

तुम झूठ बोलते हो,
तुम झूठे दिलासे देते हो,
तुमने अपने फायदे के लिए
चला रक्खीं हैं कहानियाँ,

उसने मेरी बात का,
कुछ जवाब न दिया,
चुगता रहा दाना,
जब तक था बचा हुआ,

और जाते जाते कह गया,
गलत तो है जो करता हूँ,
पर पापी पेट के लिए,
सब कुछ करना पड़ता!

आगे बढ़ जा

चलते चलते,
एक आदमी का पाऊँ,
अंगारे पे आ गया,

और वो खड़े रहकर वहां,
चीख पुकार करने लगा,
शोर मचाने लगा,

तभी एक और आदमी,
गुज़रा वहां से,
और उसने कहा,
आगे बढ़ जा!

सब तू ही, सब तू ही, सब तू ही

ऐ मेरी सरजमीं, ऐ मेरी सरजमीं,
सब तू ही, सब तू ही, सब तू ही,
सब तू ही, सब तू ही, सब तू ही!

तू मेरा दीन, तू मेरा धर्म,
तू मेरी दवा, तू मेरा मरहम,
सब तू ही, सब तू ही, सब तू ही!

तेरी शान के लिए, हर कदम,
तेरी आन के लिए, दम दम,
सब तू ही, सब तू ही, सब तू ही!

तू ही चाहत, तू ही मोहब्बत,
तू ही दौलत, तू ही शोहरत,
सब तू ही, सब तू ही, सब तू ही!

दिन भी तू, रात भी तू,
सुबह भी तू, शाम भी तू,
सब तू ही, सब तू ही, सब तू ही!

गीत भी तू, संगीत भी तू,
प्रीत भी तू, मीत भी तू,
सब तू ही, सब तू ही, सब तू ही!

धड़कन भी तू, दिल भी तू,
मैं कहाँ अब, बस तू ही तू,
सब तू ही, सब तू ही, सब तू ही!