ਮੈਂ ਬੇਰੋਜਗਾਰ, ਮੈਂ ਬੇਰੋਜਗਾਰ

ਮੈਂ ਬੇਰੋਜਗਾਰ, ਮੈਂ ਬੇਰੋਜਗਾਰ,
ਚੁੱਕ ਕੇ ਥੱਬਾ ਕਾਗਜਾਂ ਦਾ,
ਨਿੱਕਲਦਾ ਹਾਂ ਰੋਜ ਘਰੋਂ ਬਾਹਰ,
ਪਿੰਡੋਂ ਦੂਰ ਵੱਲ ਸ਼ਿਹਰ ਬਜ਼ਾਰ,
ਵਿੱਚ ਤਲਾਸ਼ ਕੰਮ ਕਾਰ,
ਮੈਂ ਬੇਰੋਜਗਾਰ, ਮੈਂ ਬੇਰੋਜਗਾਰ...

ਲੱਖਾਂ ਦੀ ਭੀੜ ਦੇ ਵਿੱਚੋਂ,
ਦਫਤਰ ਵੜਦੇ ਕਿਸੇ ਅਸੀਂ ਇੱਕ ਹਜ਼ਾਰ,
ਕੋਈ ਇੱਕ ਅੱਧਾ ਓਹ ਰੱਖ  ਲੈਂਦੇ,
ਬਾਕੀ ਮੁੜ ਆਂਦੇ ਸਭ ਖਾਲੀ ਹੱਥੀਂ ਬਾਹਰ,
ਮੁੜਨ ਵਾਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਮੈਂ ਹਰ ਵਾਰ ਮੈਂ ਹਰ ਵਾਰ,
ਮੈਂ ਬੇਰੋਜਗਾਰ, ਮੈਂ ਬੇਰੋਜਗਾਰ...

ਲੱਗਾ ਹੈ ਜੱਦ ਦਾ ਮੱਥੇ
ਟਿੱਕਾ ਮੇਰੇ ਇਹ  ਬਦਨਾਮੀ ਦਾ,
ਬਣ ਕੇ ਮੋਹਰ ਮੇਰੇ ਚਿਹਰੇ ਤੇ,
ਨਾਕਾਮਾਯਾਬੀ ਨਾਕਾਮੀ ਦਾ,
ਉਸ ਦਿਨ ਦਾ ਜੀਨਾ ਹੋਇਆ ਦੁਸ਼ਵਾਰ,
ਹਰ ਪਾਸਿਓਂ ਪੈਂਦੀ ਏ ਫਟਕਾਰ,
ਮੈਂ ਬੇਰੋਜਗਾਰ, ਮੈਂ ਬੇਰੋਜਗਾਰ...

ਹੱਟ ਵਾਲਾ ਵੀ ਨਹੀਓਂ ਦੇਂਦਾ,
ਕੋਈ ਹੁਣ ਮੈਨੂ ਉਧਾਰ,
ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਹੁਣ ਨਹੀਂ ਬਿਹਂਦਾ,
ਮਿੱਤਰ, ਬੇਲੀ, ਸੱਜਨ ਯਾਰ,
ਓਹਵੀ ਹੁਣ ਕਦੇ ਮਿਲਨੇ ਨਾ ਆਈ,
ਵਿਸਰ ਗਿਆ ਉਸਨੁ ਵੀ ਪਿਆਰ,
ਮੈਂ ਬੇਰੋਜਗਾਰ, ਮੈਂ ਬੇਰੋਜਗਾਰ...

ਪੜਿਆ, ਲਿਖਿਆ, ਸਿੱਖਿਆ
ਜੋ ਕੁਝ ਵੀ ਸਭ ਗਿਆ ਬੇਕਾਰ,
ਤੱਕਦਾ ਹਾਂ ਜੱਦ ਕਦੇ ਸ਼ੀਸ਼ੇ ਵਿੱਚ,
ਲਗਦਾ ਹਾਂ ਲਾਚਾਰ, ਬੀਮਾਰ,
ਆਪਨੇ ਆਪ ਤੋ ਵੀ ਸ਼ਰਮਸਾਰ,
ਜੀਨਾ ਵੀ ਹੁਣ ਤਾਂ ਲੱਗੇ ਭਾਰ,
ਮੈਂ ਬੇਰੋਜਗਾਰ, ਮੈਂ ਬੇਰੋਜਗਾਰ...

जाने घडी घडी उसकी याद क्यों आती है

जाने  घडी घडी उसकी याद क्यों आती है,
जो हो नहीं सकता अपना कभी,
जाने हर सांस क्यों उसे इतना चाहती है,
जाने  घडी घडी उसकी याद क्यों आती है....

हम है यहाँ और वो हजारों मील दूर कहीं,
वो सुन नहीं सकते हमें कभी चाह के भी,
जाने दबी दबी सी आह उसे आवाज़ क्यों लगाती है,
जाने  घडी घडी उसकी याद क्यों आती है....

पहले ही गुज़र चुके हैं दिल से दर्द के कई काफिले,
भूले नहीं अभी तक इसे पुराने गम , शिकवे, गिले,
जाने जिंदगी सितम के और सैलाब क्यों चाहती है!
जाने क्यों घडी घडी उसकी याद आती है....

जो ख्वाब भी नहीं हो सकता अपना कभी,
जो न हुआ अब जो न हुआ है पहले कभी,
जाने उसे ये धडकने क्यों हकीकत करना चाहती है,
जाने  घडी घडी उसकी याद क्यों आती है....

जो होती चाहत कभी उन्हें भी हम से,
तो वो आ चुके होते हमारे पास कब के,
ये आरज़ू नादान जाने क्यों समझ न पाती है,
जाने  घडी घडी उसकी याद क्यों आती है....

भूख के दुश्मन से छिपते यहाँ फिरते हैं

मिटटी के आदमी हैं,
मिटटी से लगते हैं,
कसूर हमारा ही,
सोने के शहर आ गए,
जहाँ मिटटी को
अच्छा न समझते हैं,
जहाँ मिटटी से,
दूर रहना ही सब पसंद करते हैं!

ये आलीशान घरों की,
लम्भी लम्भी कतारे,
ये रहिसों अमीरों की,
महंगी महंगी कारें,
इन सब के बीच,
फटे हाल चलते,
टूटे झोम्प्डों में पलते,
हम अच्छे तो न लगते हैं,
पर हम भी क्या कर सकते हैं!

हमारी बस्तिओं ने कर दिया है,
शहर का नक्शा खराब,
जिधर है हम रहते,
उधर से गुजर नहीं सकते नवाब,
वो हमसे बुहत नफरत करते हैं,
वो हमको अच्छा न समझते हैं,
और उनकी मेहरबानी से
हमारे घर चलते हैं,चूल्हे जलते हैं,
हाँ वो सच्च कहते हैं!

पर कोई मिले जो,
तो हम उसे बताएं,
कोई सुने जो,
तो हम उसे समझाएं,
हम भी खुश नहीं,
अपनी घर गाँव छोड़ के,
हम तो भूख के दुश्मन से,
छिपते यहाँ फिरते हैं!

यूं तो सफ़र इस राह पर जारी रहेगा

यूं तो सफ़र इस राह पर जारी रहेगा,
बस अपना साथ अब आगे नहीं रहेगा,
कुछ खता हुई हो कभी तो माफ़ करना!

हर जिंदगी का शायद मकसद होता है,
जिस से उसका अगला कदम तय होता है,
मेरे जाने की वजह भी तुम यही मान चलना!

हाँ हों अगर हम भी कहीं किसी काम के,
पुहंचा सकते हों बिगड़ी जो कोई अंजाम पे,
बेजिझक बेफिक्र हमें कभी भी याद करना!

बीते वक़्त की मुझे तो याद बुहत आएगी,
मिलने की चाह दिल को अक्सर सताएगी,
मैं कोशिश करूंगा तुम भी कोशिश करना!

सितारों की अंजुमन छोड़ जा रहा हूँ,
नहीं जानता क्या क्या छोड़ जा रहा हूँ,
मुझ नादान के लिए खुदा से दुआ करना!

देने के लिए पास कुछ भी नहीं है,
दें भी क्या कुछ भी तो अपना नहीं है,
इन आशरों के सलाम को कबूल करना!

यूं तो सफ़र इस राह पर जारी रहेगा,
बस अपना साथ अब आगे नहीं रहेगा,
कुछ खता हुई हो कभी तो माफ़ करना!