मैं खुले आसमानो का परिन्दा हूँ,

मैं खुले आसमानो का परिन्दा हूँ,
तू उड़ने देगा तो सितारे भी तोड़ के ला सकता हूँ!

अना मेरा मसला कैसे ही सकती है

अना मेरा मसला
कैसे ही सकती है,
तहम्मुल के होते हुए,
मैं मारा मारा फिर रहा
हूँ चाहत के लिए!

तू खिलती रह ओ सोनजुही

मैं तेरा चाँद ना सही,
मैं तेरी धूप ही सही,
तू खिलती रह ओ सोनजुही!

A philosopher, poet and the chemist

Trying out on the short story again (highly inspired from the The Bet by Anton Chekhov)


Three young men, all brilliant in their respective fields, all at the peak of their youth gathered at the house of the eldest of them, the philosophers place. The other two being the poet and the chemist.

Once they had discussed the daily affairs of the life, the philosopher posed them a question.

"How long do you think my friends a man would stay alive, if there was a pellet of poison tied to the wrist of each man, which he could consume and end his life without any discomfort and pain, if he is not able to bear the burdens of life, if he is finding it too heavy to shoulder the life's struggle and strife?"

Interesting question dear friend, exclaimed both the poet and the chemist.

Then started the chemist, that it would be a real nice experiment. In my experience though the life is hard and the circumstances and situations sometimes overburdening and out of control, yet I think no one wants to die. But it is a one thing to pose it as a mere theoretical question and make conclusions. I suspect the results would be altogether different if someone were to get ready to actually do this. I think anyone under trial would actually throw off the pellet after few days resulting in no conclusion. It would be a great deal even if someone could keep it for one year and go through all the ups and lows.

Inetersting catch said the philosopher, so there has to be some kind of conditions under which the subject would not throw off the pellet and would actually go through the experiment fairly. And if I have already got it right you are not interested in being part of the experiment said he to the chemist.

You have got it right, confirmed the chemist.

Turning towards the poet he said what do you say my friend? what does your poetic thought says? what lies in the depth of the human soul? Is the man just fending himself from the everlasting hawk of death in his soul? or is there some nectar of life brimming in his soul keeping him alive under all circumstances?

There is no hawk of death in the human soul eating it and pushing it toward the death, it is mostly nectar of live, said the poet, a young and promising voice in the new thought movement.

Ah, so rubbish and so idealistic exclaimed the philosopher. Just a typical poetic stance on the one of the most complex state of the affairs called life. And noded his head in agreement the chemist too.

Feeling challenged the poet threw his hat into the ring and said I will keep the pellet tied to my wrist for five years and would show you guys that life is not to be given up under any circumstances and one can pass the trials of life.

Equally shocked both the chemist and philosopher. They tried to persuade him to back off and call off the day, but he was reluctant and hell bent on doing it.

To make it easy for you said the philosopher I will pay you a thousand dollar per month as a reward and help you. And the chemist agreed to bring the pellet the next day a solid pure crystal of Iso Cynaide.

The very next day the chemist handed over the Iso Cynaide pellet to the poet and he tied it to his wrist.

Like all the years it has been the three kept on meeting. Talking about the daily affairs and then a brief by the poet on how he has overcome whatever has come his way.

Two years have passed and the chemist and the philosopher were quite amused and seemed quite convinced that their friend would pass the test of life with flying colurs. Meanwhile the poet has gone through many lows but not to show his weakness and keep his head high never discussed any of his troubles with this friends.

Then one day the chemist and the philosopher received a call from the city hospital that their friend has consumed some substance and is lying unconsciousness. The philosopher was sweating from head to toe as he knew he was the one who has pushed his friend into the jaws of death. Repenting and feeling remorseful he took along with the chemist to check upon his friend.

To his surprise his poet friend woke up after sometime and he felt quite relived. Turning to them the chemist said laughingly I knew there is a high probability of it ending like this, so I have given him a pellet of anaesthesia instead of Iso Cynaide so that there is a little shock to both of you, so that you never persuade someone to do something like this and he never looses his mind to try out something like this.

आप से भला हमें अब और क्या चाहिए

आप की आशनाई के खजाने हमने पा लिए,
आप से अब हमें और कुछ नहीँ चाहिए,

दिल तो सोहबत,अपनीयत को है लरजता,
आइए जो तो ख्याल-ए-उन्स लेके आइए,

कहाँ महकता है फूल कोई दो दिन से ज्यादा,
उम्र भर दिल महके कोई याद एसी दे जाइए,

सुख के रेले में जो जी चाहे करो ए हमजोली,
गम में लेकिन हमें अपना गम-गुसार बनाइए,

पूरी दुनियाँ में कोई नहीँ समझता हमें ठीक से,
बस आप हमारा इतना सा काम कर जाइए!

तुम कहाँ हमारे साथ चले आए

तुम कहाँ हमारे साथ चले आए,
हम खुद भटकते फिरते हैं,
रास्ता तुम्हें क्या बताएँ,

रोशनी होती हमारे पास तो,
खुद न राह तलाश लेते,
तुम्हारे रास्ते में हम,
कहाँ से चिराग जलाएँ,

जाओ किसी और को
अपना रहबर बनाओ,
इमकाँ उसी में है के
तुम्हें रहनुमा मिल जाए!

हर नफरत के बदले मोहब्बत

हर नफरत के बदले मोहब्बत,
बस इसी उम्मीद में,
हो सकता है एक दिन हमारे
वास्ते वहाँ इतने दिल धड़कने लगें,
के नफरत करने वाला,
खुद अपने पे शर्मिंदा होने लगे!

और इश्क़ में इम्तिहान खुदा क्या लेगा

ये भी कम है क्या के जी रहे तुम्हारे बिना,
और इश्क़ में इम्तिहान खुदा क्या लेगा!

सिक्का कोई भी हो हर जगह तो वो चलता नहीं है

सिक्का कोई भी हो हर जगह तो वो चलता नहीं है,
तो क्या हुआ अगर वो मुझे कुछ समझता ही नहीं है!

कैसा भी रिश्ता रख

सब कुछ नहीं तो गम ही
बांटने के लिए आ,
मोहब्बत नहीं तो
जरूरत के लिए ही आ,
कैसा भी रिश्ता रख,
किसी नीयत से भी रख,
दूर न हो छोड़ के न जा!

कितना अच्छा हो गया है दिल

कितना अच्छा हो गया है दिल,
बाकी सब की खुशी में खुश है,
अपनी खुशी से भी ज्यादा आजकल!

हो सके तो हवा तू कहीं उड़ा ले जा

हो सके तो हवा तू कहीं उड़ा ले जा,
हो सके तो पानी तू कहीं बहा ले जा,
अब मेरा यहाँ जी नहीं लगता,
कोई मुझे कर दो यहाँ से रिहा!

हो सके तो ए सुबह तू मुझे समेट जा,
हो सके तो ए रात तू मुझे निगल जा,
मैंने देख लिए हैं सब मौसम,
अब मुझे और कुछ देखने की ना चाह!

हो सके तो ए ज़मीन तू खुल जा,
ही सके तो आसमान तू हाथ बड़ा,
अब मेरा यहाँ है दम घुटता,
कोई बदल के दो मुझे नया जहाँ!

हो सके तो ए खुदा तू खुद आ,
हो सके तो कोई फरिश्ता भिजवा,
मेरा यहाँ खत्म है खेल,
किसी और कहानी में मुझे दे किरदार बना!

ये ज़िन्दगी नहीं है जाना

यूँ बुझे बुझे उठना,
यूँ बुझे बुझे सो जाना,
ये ज़िन्दगी नहीं है जाना!

कोई बात है तो
आ बात कर लें,
कोई मसला है तो
आ हल कर लें,
पर यूँ चुप चुप रहना,
तन्हा आँसू बहाना,
ना कुछ कहना,
ना कुछ बताना,
ये ज़िन्दगी नहीं है जाना!

ज़िन्दगी है तेरा हसना,
ज़िन्दगी है तेरा गाना,
ज़िन्दगी है तेरी
मस्ती से, मेरे आँगन
के हर फूल का लहराना,
ज़िन्दगी है तेरी आँखों
के नूर से सुबह का होना,
ज़िन्दगी है तेरे चेहरे की
लालियों से हर शाम
आसमान का सुर्ख होना,
ज़िन्दगी है तेरे गेसु
की पनाह में सूरज का
डूबना, रात होना!

तू मोड़ ला बहारों को,
मौसमों को बदलने में
मुझे भी काम पे लगा लो,
अपने गम मुझे दे दो,
मेरी खुशी तुम ले लो,
ला दो मुझे रोशन
सुबह, चमकते दिन
महकती शामें, मस्ती
भरी, मद भरी रातें,
जैसा मैंने तुम्हें हमेशा देखा,
जैसा मैंने तुम्हें हमेशा जाना,
लोट आओ न वहीँ पे
तुम फिर से ओ जाना!

यूँ बुझे बुझे उठना,
यूँ बुझे बुझे सो जाना,
ये ज़िन्दगी नहीं है जाना!

तू अपने आप को साबित कदम रख

फूल से हमेशा
खुश्बू ही आएगी,
चाहे वो कहीं भी
रख दिया जाएगा,

चंदन हमेशा देगा
महक और ठंडक,
चाहे जितना भी
घिस दिया जाएगा,

चिराग मंदिर में हो
या चाहे जंगल में,
हमेशा रोशनी ही
हर तरफ फैलाएगा,

तू अपने आप को
साबित कदम रख,
ज़माना और हालात
तुझे छेड नहीं पाएगा!

अपना के उसने मुझ पे ही एहसान किया है

मैंने उसके लिए
कुछ भी नहीं किया है,
साथ चल के सफर उसने
मेरा ही आसान किया है,

ये उसकी दरिया दिली
है के मेरा शुक्र करता है,
वरना अपना के उसने
मुझ पे ही एहसान किया है!

चलो हमने इसे ही अन्जाम कर दिया

मौजजे की उम्मीद में
कोशिशों का साथ छोड़ दिया,
जान-ए-हकीकत ने हमसे
ख़फ़ा हो के मुँह मोड़ लिया,

कभी सोचा ही ना रस्मे
दुनिया और राहदारी क्या है,
हर एक चीज़ में यही सोचा
दिल-ओ-जान दिया के न दिया,

क्यों मिले हमको दुनिया
और इसकी कोई शय भी,
नाता ख्यालों से ही, हमने
ही तो था सब जोड़ लिया,

आलम-ए-तन्हाई, बेकसी
ही चलो सिर्फ मेरे हिस्से सही,
क्या बुरा जो हमने और कुछ
भी न कभी हासिल किया,

सिवाए ठोकरों और दुशवारी के
इन रस्तों पे है और कुछ नहीं,
कोई चाहिए था पता करने के लिए,
चलो हमने इसे ही अन्जाम कर दिया!

उसने गरीबी देखी थी मैंने देखा था फसाद

उसने गरीबी देखी थी
मैंने देखा था फसाद,
वो तो उभर आया है
अपने हालातों से,
मुझे करता है वक़्त
वो आज भी बर्बाद,

उसके घर में अंधेरा था
मेरा दिल बुझ गया था,
मैं ढूंढता फिरता हूँ
लौ दिल के लिए,
वो गया बाज़ार
खरीद लाया चिराग,

उसको मालूम था
ज़िंदा रहेंगे तो मुश्किलें
हल हो ही जाएँगी,
हमको ये भी मालूम नहीं
मर के भी पाएगा
दिल क्या गम से निजात,

फिर जी लेता है आदमी
किसी न किसी तरह
पेट बाँध के मुफलिसी में,
लेकिन जीते जी मारते हैं,
सदमा, फ़िराक़, हादसा,
खौफ, दहशत, फसाद!

उसको खोने का इस कदर बड़ जाएगा

उसको दिल ठीक से
कुछ कह भी ना पाएगा,
डर उसको खोने का
इस कदर बड़ जाएगा,
सोचा ना था बढ़ते बढ़ते
इश्क़ में ये मंजर भी आएगा!

दिल बुहत नाजुक है

दिल बुहत नाजुक है,
इसी लिए बनाने वाले ने
इसको इतने अंदर रखा है,
गलती तेरी है जो इसे
तू सीने से निकाल के,
हथेली पे लिए फिरता है!

ਸਾਥੋਂ ਦੂਰ ਹੀ ਰਹਿ ਵੇ ਲੋਕਾ

ਐਥੈ ਅਜਬ ਚਲਣ ਨੇ ਯਾਰੀਆਂ ਦੇ,
ਸਾਥੋਂ ਨਹੀਂ ਨਿਭ ਪਾਣੀਆਂ ਨੇ,
ਸਾਥੋਂ ਦੂਰ ਹੀ ਰਹਿ ਵੇ ਲੋਕਾ!

ਐਥੇ ਯਾਰ ਓਹੀ ਹੈ,
ਜਿਹੜਾ ਭਰਕੇ ਗਲਾਸ ਵਿਸਕੀ ਫੜਾਵੇ,
ਜਿਹੜਾ ਯਾਰ ਦੇ ਮੂਹ ਦੀ ਸਿਗਰਟ ਸੁਲਗਾਵੇ,
ਜਿਹੜਾ ਅੰਨੇ ਖੂਹ ਵਿੱਚ ਯਾਰ ਨੂੰ ਧੱਕਦਾ ਜਾਵੇ,
ਜਿਹੜਾ ਯਾਰ ਦਾ ਧਨ ਮਾਲ ਰੁੜਾਵੇ,
ਸਾਥੋਂ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ, ਸਾਨੂੰ ਲਗਦਾ ਹੈ ਏ ਧੋਖਾ,
ਸਾਥੋਂ ਦੂਰ ਹੀ ਰਹਿ ਵੇ ਲੋਕਾ!

ਐਥੇ ਫਜ਼ੂਲ ਹਾਸਾ ਖੇਡਾ ਹੀ ਸਭ ਕੁੱਜ ਹੈ,
ਐਥੇ ਫਿਕਰ, ਪਰਵਾਹ, ਦਰਸ਼ਨ ਸਭ ਤੁਛ ਹੈ,
ਮੰਦੇ ਹੋਵੋ ਯਾ ਚੰਗੇ ਬਸ ਖੁਸ਼ਾਮਦ ਮੁੱਖ ਹੈ,
ਸਾਥੋਂ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ, ਸਾਨੂੰ ਲਗਦਾ ਹੈ ਏ ਔਖਾ,
ਸਾਥੋਂ ਦੂਰ ਹੀ ਰਹਿ ਵੇ ਲੋਕਾ!

ਅਸੀਂ ਮਜਮੂਨ ਸਾਰੇ ਗ਼ਲਤ ਪੜੇ ਹੋਏ ਨੇ,
ਸਾਡੀ ਸੋਚ ਦੇ ਪੰਛੀ ਕੀਤੇ ਪਿੱਛੇ ਹੀ ਖੜੇ ਹੋਏ ਨੇ,
ਅਸੀਂ ਤੇਰੀ ਤਰੱਕੀ ਲਈ ਖੁਦ ਨਾਲ ਵਾਦੇ ਕਰੇ ਹੋਏ ਨੇ,
ਸਾਡੇ ਨਾਲ ਨਿਭ ਜਾਣਾ ਨਹੀਓਂ ਕੰਮ ਕੋਈ ਸੌਖਾ,
ਸਾਥੋਂ ਦੂਰ ਹੀ ਰਹਿ ਵੇ ਲੋਕਾ!

पर उसे गलत कहना मुझे लगा ठीक नहीं

To the mind and world which finds it easy to mock and mar rather being patient, caring, sensitive and understanding ...

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलियो कोई,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोई!
-- कबीर---

वो गलत तो था ये बात तो है सही,
पर उसे गलत कहना मुझे लगा ठीक नहीं,

कोई उसको परेशानी कोई उसको गम था,
वरना यूँ तो कभी वो पेश आता ही नहीं,

बैठा रहा सुनता रहा बातें करता रहा,
और मैं कोशिश में था सुनने की अनकही,

उस तरफ उसकी खुददारी कुछ बताए ना,
इस जानिब मेरी मजबूरी समझ आए नहीं,

पूरी शाम निकल गयी कुछ हाथ ना आया,
क्या था उसके मर्ज़-ए-मायूसी मर्ज़-ए-गमी,

और जाते हुए भी उसके चेहरे पे वही शिकन,
होठों पे वही मायूसी, आंखों में वही नमी,

और मैं सारी रात यही सोच के बेचैन रहा,
कहीं वो कुछ गलत कर ना बैठे कहीं,

उसकी चाह में खामियाँ निकालने की बजाए,
उल्टा मुझे लगा मेरी मोहब्बत में है कमी,

क्यों नहीं समझा उसने मुझे अपना चारागर,
क्यों उसने मुझे अपना जख्म दिखाया नहीं,

वो गलत तो था ये बात तो है सही,
पर उसे गलत कहना मुझे लगा ठीक नहीं...

Rabb Da Byaan

ਹਵਾ ਤੇ ਪਾਣੀ ਵਿੱਚੋਂ,
ਕੋਈ ਮੈਨੂੰ ਇਹ ਦੱਸਦੇ,
ਕਿਹੜੀ ਚੀਜ਼ ਜਾਦਾ ਜਰੂਰੀ ਹੈ,
ਮਰਦ ਵੱਡਾ ਹੈ, ਕੇ ਔਰਤ ਉੱਚੀ ਹੈ,
ਮੈਂ ਉਹਨੂੰ ਇਹ ਦੱਸ ਦਿਆਂਗਾ!

ਕਣਕਾਂ ਤੇ ਚੌਲਾਂ ਵਿਚੋਂ,
ਸਾਰੇ ਲੋਕੀਂ ਇੱਕ ਹੋ ਕੇ,
ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਇਹ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕਰ ਦੇਣ,
ਭੀ ਕਿਹੜੀ ਸ਼ੈ ਨਹੀਂ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ,
ਤੇ ਕਾਲੇ ਗੋਰੇ ਫਿਰ, ਇੱਕੋ ਮੰਤਰ ਨਾਲ ਮੈਂ,
ਸਾਰੇ ਇੱਕੋ ਜਿਹੇ ਕਰ ਦਿਆਂਗਾ!

ਫੁੱਲ ਜਰੂਰੀ ਚੰਬੇ ਦਾ,
ਜਾਂ ਪੱਤੇ ਕੌੜੇ ਨਿੱਮ ਦੇ ਨੇ,
ਜਾਂ ਫਿਰ ਸਰਦਾ ਬਿਨ ਟਾਹਲੀ ਦੇ,
ਕੋਈ ਇਸਦੀ ਪੜਤਾਲ ਕਰਲੇ,
ਮੈਂ ਹਰ ਜੁੱਸੇ ਵਿੱਚ ਫਿਰ,
ਰੰਗ ਇੱਕੋ ਜਿਹਾ ਭਰ ਦਿਆਂਗਾ!

ਫਰਕਾਂ ਨਾਲ ਹੀ ਕੰਮ ਚਲਦੇ ਦੇ,
ਫਰਕ ਮਿਟਾ ਕੇ ਸਾਰੇ,
ਦੁਨੀਆਂ ਕੋਈ ਬਣਾ ਕੇ ਦਿਖਾਦੇ,
ਮੈਂ ਭੀ ਓਹਦੇ ਮਗਰੇ ਚੱਲ ਕੇ,
ਦੁਨੀਆਂ ਆਪਣੀ ਓਵੇਂ ਬਦਲ ਦਿਆਂਗਾ!

ਓ ਹਾਨੀਆ, ਓ ਹਾਨੀਆ

ਓ ਹਾਨੀਆ, ਓ ਹਾਨੀਆ
ਓ ਹਾਨੀਆ, ਓ ਹਾਨੀਆ,

ਜਦ ਤੱਕ ਸਾਹ ਰਹਿਣਗੇ, ਹਾਇਓ ਮੇਰੇ ਹਾਨੀਆ,
ਵਹਿੰਦੇ ਰਹਾਂਗੇ, ਇੱਕ ਦੂਜੇ ਦੇ ਵੇ ਪਾਣੀਆਂ,
ਮਰ ਜਾਂਵਾਂਗੇ, ਜੱਗ ਗਾਉਗਾ ਕਹਾਣੀਆਂ,
ਓ ਹਾਨੀਆ, ਓ ਹਾਨੀਆ

ਵਿਛੜ ਜਾਈਏ ਤਾਂ ਇੱਕ ਦੂਜੇ ਨੂੰ ਲੱਭਣਾ,
ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਈਏ ਤਾਂ ਭਾਲ ਵਿੱਚ ਭਟਕਣਾ,
ਬਾਜ ਇੱਕ ਦੂਜੇ ਦੇ ਲੱਗਣਾ ਸੱਖਣਾ ਸੱਖਣਾ,
ਉਮਰਾਂ ਗਲ ਲੱਗ ਲੱਗ ਆਪਾਂ ਵੇ ਬਿਤਾਨੀਆਂ,
ਓ ਹਾਨੀਆ, ਓ ਹਾਨੀਆ

ਕੱਜਣਾ ਇੱਕ ਦੂਜੇ ਦਾ ਦਮ ਦਮ ਆਪਾਂ ਪਰਦਾ,
ਲੜਨਾ ਹਰ ਆਈ ਨਾਲ ਇਕੱਠੇ ਹੋ ਸ਼ੇਰੇ ਮਰਦਾ,
ਐਸੀ ਪੱਕੀ ਵੱਜਰ ਇੰਦਰ ਦਾ ਵੀ ਨਾ ਪਾੜ ਸਕਦਾ,
ਪੀਂਗਾ ਪ੍ਰੀਤ ਦੀਆਂ ਵੇ ਅਰਸ਼ਾਂ ਪਾਰ ਚਢਾਣੀਆਂ,
ਓ ਹਾਨੀਆ, ਓ ਹਾਨੀਆ

ਇੱਕ ਮਾਂ ਦੇ ਭਾਵੇਂ ਵੇ ਆਪਾਂ ਨਾ ਹੋਏ ਜੰਮੇ,
ਪਰ ਆਪਣੀ ਹੋਵੇ ਐਸੀ ਦੋ ਦਾ ਨਾਂ ਕੋਈ ਮੰਨੇ,
ਜਿਹੜਾ ਦੇਖੇ ਕੇਹੇ ਉਹ ਜਾਂਦੇ ਰਾਮ ਲਖਨ ਨੇ,
ਨਿਭ ਨਿੱਤ ਨਿੱਤ ਜੱਗ ਤੇ ਐਸੀਆਂ ਆਪਾਂ ਜਾਣੀਆਂ,
ਓ ਹਾਨੀਆ, ਓ ਹਾਨੀਆ

शुद्ध गीत पर किसी किसी को चाहिए

शुद्ध घी सभी को चाहिए,
शुद्ध गीत पर किसी किसी को चाहिए,
अपने ही दिमागों की आजकल ये कदर है!

अब बोलिए भी तो, किसके लिए बोलिए!

मेरी ज़ुबान सी दी है,
मेरे अपने ही लोगों ने,
अब बोलिए भी तो,
किसके लिए बोलिए!

रोज उसको दिल समझाता है

रोज उसको दिल समझाता है,
रोज मुझसे वो खफा हो जाता है,
पर करें भी तो क्या करें,
कुछ ये मेरा फ़र्ज़ है,
कुछ मोहब्बत में रुका न जाता है!

मुझे कौन चाह पाएगा?

मुझे कौन चाह पाएगा?
मुझसे कौन निभा पाएगा?
मैने सोना ठुकरा के,
लोहे का छल्ला पहना हुआ,
बात इस में है कितनी गहरी
क्या कोई समझ पाएगा?

मकसद फकीर का इतना सा ही

बड़ा बनना, मशूहर होना
इसकी कोई चाह नहीं है,
कुछ चीज़ें सँवर जाएँ,
कुछ चीज़ें अच्छे के लिए बदल जाएँ,
मकसद फकीर का इतना सा ही है!

बात नहीं करनी तो ना कीजै

बात नहीं करनी तो ना कीजै,
पर बात नहीं करनी ये बता तो दीजै,

फैंसला यही है सोचना कुछ नहीं है,
तो फैंसला फिर सुना भी दीजै,

इतना कच्चा है अपना नाता तो,
तो फिर अच्छा हाथ छुड़ा ही लीजै,

क्यों निभानी जबरन दिल बुझा के,
आप हल्के होइए हमें रिहा कीजै!

वो क्या खाक अपना है

वो क्या खाक अपना है,
जिससे पूछना पड़े बात करने के लिए,
जिससे दिन मुकर्रर करना पड़े,
हर छोटी बड़ी मुलाकात करने के लिए,

सोचना पड़े कहते हुए,
कहना हो तो, कहना पड़े सोचते हुए,

अपना तो वो होता है,
छपाक से जिसके पास
तुम कभी भी जा सको,
दरवाज़ा तुम जिसका
जा के कभी भी खटका सको,

बात कहते हुए खुद को न रोकना पडे,
कहने के बाद न फिर सोचना पड़े,

और वो भी तुम्हें मिले हर बार इस तरह,
कर रहा हो तुम्हारा ही इंतज़ार जिस तरह,

जाओ तुम तो दूर तक तुम्हे देखता रहे,
फिर आना अच्छा लगा तुमसे ये कहे!

समंदर कभी कभी बिल्कुल, माँ सा नज़र आता है

समंदर कभी कभी बिल्कुल,
माँ सा नज़र आता है,
जाता हूँ जब भी पास इसके,
लहर लहर हो के गाता है,

अपने ही जिस्म से बना
के बादल, मैं जहाँ होता हूँ,
मेरी प्यास बुझाने के लिए
वहाँ बरस जाता है!

रोशनी सब तेरी है, मेरी तो सिर्फ आंखें हैं

रोशनी सब तेरी है,
मेरी तो सिर्फ आंखें हैं,
मैं तो बस बयान करता हूँ,
सब है तो तेरी ही बाते हैं!

तेरी हवाओं से ही
मेरी हर उड़ान है,
जिस्म तो यूं ही
फड़फड़ाता पाँखें है!

रंग, मिठास, महक,
सब तेरेे ही हैं दिए हुए,
गूंथ के फ़ूलों में,
मैंने तो सिर्फ बांटे हैं!

ये तेरी चाह, तेरी
इनायत है जो कुछ भी है,
वरना इतने हुनर
मुझे कहाँ से आते हैं!

बस एक नज़रिया बदल ले नज़र का

तू अपनी राह में खुद दीवार है,
समझ जाएगा जिस दिन बात ये,
सब रास्ते तेरे लिए खुल जाएँगे,

बेड़ियाँ तेरे पैरों में नहीं सोच में हैं,
देख पाएगा किसी दिन जो ठीक से,
बंधन तेरे सारेे कट जाएँगे,

आँखें खोल हाथ भी हटा चेहरे से,
उजाले कब के हो चुके हैं,
तुझे भी फिर नज़र आएँगे,

किसी के पास इतना वक़्त कहा,
कोई किसी के लिए कांटे बिछाए,
ये वहमों गुमां निकाल देगा दिल से, तो
हर तरफ तुझे फूल ही नज़र आएँगे,

बस एक नज़रिया बदल ले नज़र का,
थोड़ी हिम्मत थोड़ी कोशिश करके,
सहरा सब के सब गुलशन हो जाएँगे!

रोज बरसता है आज कल जो पानी

रोज बरसता है आज कल जो पानी,
लगता है आसमान को भी सता रही,
अब के सावन कोई याद पुरानी!

तू खुश हो तेरे रास्ते में इतने पत्थर हैं

तू खुश हो तेरे रास्ते में
इतने पत्थर हैं, के बुहत हैं
तुझे फौलाद बनाने के लिए,

वरना लोग पैसा दे के जाते हैं
कसरत खानों में,
जिस्म को लोहा बनाने के लिए!

खुदा की इस को भी
तू एक इनायत ही समझ,
तुझे कुछ न दिया,

तुझे आज़ाद रखा
उसने, जो जी चाहे,
उस पे बाज़ी लगाने के लिए!

अपनी ही आंखों के
आंसू पी के तूने कई रातें
अपने पेट की आग बुझाई है,

तू खुश किस्मत समझ
अपने आप को, तू तयार है
किसी भी सफर पे जाने के लिए!

और ज़माने की ठोकरें,
रास्ते की मुश्किलें,
ये सब तेरी कमाई है,

लोग मारे मारे फिरते हैं
रहबरों की तलाश में,
रास्ता, रोशनी पाने के लिए!

अच्छे वक़्तों में रखेंगे तुझे
सादा, बुरे वक़्तों में करेंगे
ये वक़्त तेरी रहनुमाई,

तू जानता होगा उठा है तो
गिर सकता है, गिरा है तो
क्या चहिये उठ जाने के लिए!

अगर तुझे कोई मिलता है चाहने वाला

अगर तुझे कोई मिलता है
चाहने वाला ज़माने को ठुकरा के,
तो बेखौफ हो के कीमत
उस मोती के लिए चुका दे,

ये ज़माना तो कभी किसी का
ना हुआ और न होगा,
तू अपने दिल को
महफूस रखने के लिए
उस दिल को आशियाना बना ले!

चाहत अपने उरूज़ पे थी

चाहत अपने उरूज़ पे थी,
तो दिल में ख्याल ये भी था,
अपना घर जला के भी,
रखेंगे उसकी राह रोशन,
चाहे वो हमसे ना-आशना ही सही!

ਹੋਵੇ ਦਿਲ ਉਦਾਸ ਤਾਂ

ਹੋਵੇ ਦਿਲ ਉਦਾਸ ਤਾਂ ਖੜਕਾ ਲਵੀਂ ਸਾਡਾ ਆ ਕੇ ਬੂਹਾ,
ਮੁਮਕਿਨ ਹੈ ਤੈਨੂੰ ਏਥੋਂ ਉਮੀਦ ਤੇ ਆਸ ਮਿਲੇ!

तू भी कोई फरिश्ता नहीं, मैं भी कोई खुदा नहीं

तू भी कोई फरिश्ता नहीं,
मैं भी कोई खुदा नहीं,
बस इतना याद रखना,
अपनी खूब निभेगी!

गलतियाँ होँगी माफ करना,
मुसीबतें होँगी एतबार करना,
चलना सबब-ए-एहतराम से,
यकीनन कभी न टूटेगी!

बुरे वक़्तों को करके याद,
करना न कभी आज बर्बाद,
थोड़ा बचते बचाते चलना,
लाजिम है रवाँ गुजरेगी!

और ज़िन्दगी है ये फानी,
कुछ तयशुदा लम्हों की कहानी,
बढ़ना हमेशा ये सोच के,
मुमकिन खिज़ा न खलेगी!

तू भी कोई फरिश्ता नहीं,
मैं भी कोई खुदा नहीं....