तो फिर बात और होती

अगर उसे भी मुझसे चाहत होती,
लगी जो आग है दिल में मेरे,
लगी जो उसके दिल में भी बराबर होती,
जैसे हूँ मैं उसके लिए पागल,
वैसे ही मेरे लिए भी वो जो पागल होती,
जैसे हूँ मैं उसके इश्क में घायल,
वैसे ही वो दीवानी भी घायल होती,
तो फिर बात और होती,तो फिर बात और होती...

फिर यूं ना होती शामें वीरां,
फिर सूनी अँधेरी गलीओं का,
मैं न रातों को बनता मेहमान,
फिर तो हर शाम मुलाक़ात होती,
सुहाने लम्हों की यादों के बिस्तर पे लेटे हुए,
एक प्यारे नगमे सी चादर लपेटे हुए,
आँखे आने वाले कल के लिए सपने संजोती,
तो फिर बात और होती,तो फिर बात और होती...

फिर यूं न लगता जग सब उजड़ा उजड़ा सा,
फिर यूं न रहता दिल मेरा उखड़ा उखड़ा सा,
फिर तो हर मौसम बहार होती,
फिर तो दिल की हर गली गुलज़ार होती,
फिर आँखे यूं न रो रो के बेजार होती,
तो फिर बात और होती,तो फिर बात और होती...

शायद कसूर मेरा ही है,
शायद गलत मैंने ही है किया,
जो हो कर के मानव धरती का,
अम्बर की एक हसीं पारी को है चाह लिया,
अब इस सूरत में मिलन की बात कैसे हो सकती,
काश! हो सकती तो
तो फिर बात और होती,तो फिर बात और होती...

अब तो है हम जिस राह पर,
हर लम्हा गुजरता है एक दर्द भरी आह भर,
और जैसे तैसे सब दिन कटते जायेंगे,
सब की तरह हम भी साँसे पूरी कर मर जायेंगे,
कोई और ही अपनी राह होती अगर वो साथ जो होती,
तो फिर बात और होती,तो फिर बात और होती...