शुद्ध गीत पर किसी किसी को चाहिए

शुद्ध घी सभी को चाहिए,
शुद्ध गीत पर किसी किसी को चाहिए,
अपने ही दिमागों की आजकल ये कदर है!

अब बोलिए भी तो, किसके लिए बोलिए!

मेरी ज़ुबान सी दी है,
मेरे अपने ही लोगों ने,
अब बोलिए भी तो,
किसके लिए बोलिए!

रोज उसको दिल समझाता है

रोज उसको दिल समझाता है,
रोज मुझसे वो खफा हो जाता है,
पर करें भी तो क्या करें,
कुछ ये मेरा फ़र्ज़ है,
कुछ मोहब्बत में रुका न जाता है!

मुझे कौन चाह पाएगा?

मुझे कौन चाह पाएगा?
मुझसे कौन निभा पाएगा?
मैने सोना ठुकरा के,
लोहे का छल्ला पहना हुआ,
बात इस में है कितनी गहरी
क्या कोई समझ पाएगा?

मकसद फकीर का इतना सा ही

बड़ा बनना, मशूहर होना
इसकी कोई चाह नहीं है,
कुछ चीज़ें सँवर जाएँ,
कुछ चीज़ें अच्छे के लिए बदल जाएँ,
मकसद फकीर का इतना सा ही है!