हर किसी की अपने आप से ये लड़ाई है

इतनी आशनाई है फिर भी तन्हाई है,

ये खलिश न जाने कहाँ से आई है,


जो मिला उसका जश्न कम है मनाता,

जो ना मिला उसके लिए दिल सौदाई है,


शायद मैं ही गया हूँ वक्त की तरह,

जो कभी आशिक तो कभी हरजाई है,


या मेरा मिजाज़ ही ऐसा हो गया है,

अच्छा लगने गया इसे ज़ौक-ए-गुदाई है,


चलो तुम मेरी ज्यादा परवाह न करो,

हर किसी की अपने आप से ये लड़ाई है।

हो दोनों जानिब तो कुछ बात बनती है

हो दोनों जानिब तो कुछ बात बनती है,

नहीं तो चाहत की बस ख़ाक बनती है,


वही चाँद सूरज वही ज़मीनों आसमान,

देखते हैं किस तरफ़ दिन-रात बनती है,


ना चलो अगर हर बार ख़ुशी ही चाहिए ,

खेलोगे तो हार जीत दोनों बात बनती है,


फ़क़त हुनर से मुमकिन बस थोड़ा कुछ,

साथ जिगर रखो तब बड़ी बात बनती है,


अच्छा बुरा वक़्त दोनों में ही सबक  कोई,

देखना आ जाए मुकम्मल हयात बनती है!

हिफाज़त

जो सब कुछ भी 

हमारे पास है,

जितना मेरा है

उतना तुम्हारा भी है,


माना मैंने चाहत रखी,

मेहनत की है,

पर तुमने मुझे 

उन्हें साकार करने 

की मोहलत दी है,


तुमने मेरे सपनोँ की 

हिफाज़त की है!

नौकरी

दुनिया से क्यों

करना गिला, के वो

हमको ना जान पाए हैं,

सोचें तो हम ये

क्या अपनी क्षमताओं

को पहचान पाए हैं?


उसको यकीन था

अपने पे, उसने घर

छोड़ दांव लगाया,

फ़ाके झेले, तन्हाइयां

देखी, तल्ख़ियां सही,

नींद छोड़ी, दर्द सहा,

कई बार गिरा,

कितनी बार टूटा,

फिर भी उम्मीद न छोड़ी,


और फिर हम ही

गए थे, महफूज रहने के

लिए उसकी छत के नीचे,

जो जब चाहे छोड़ दें,

ना कोई पूछे, ना कोई

जबरन वापिस खींचे,


शायद हम ही नहीं

सोच रहें है, यहाँ

से अब आगे कहां

और कैसे जाना है,

उसके सिर दोष मढ़ना

शायद आलसमंदी

या बहाना है!