लक्षमण को जियों थे राम प्यारे,
आप भी हम को हो यों ही प्रिय,
ना कुछ चाहें, ना कुछ मांगे,
बस सोचें आ सके कोई काम भैया,
ढूंढे है जग में लोग अपने आराध्य को,
काशी, बनारस, मथुरा, ब्रिज, गोकुल,
हमारे लिए तो वही बैकुंठ,वही कैलाश,
बसो जिस गली, जिस धाम आप भैया,
लक्षमण को जियों थे राम प्यारे,
आप भी हम को हो यों ही प्रिय,
धैर्य,विवेक,सहनशीलता,ढृढ़ निश्चयी,
दूर द्रष्टा, निर्मल, कोमल हृदयी,
कर्मठ, गुण आप में सब एक से एक,
कुछ कुछ हम भी सवारें है जीवन को,
बस आपको ही बढ़ते देख देख,
करते रहो यूं ही नित्य मार्गदर्शन,
जियों कभी गौतम, नानक ने था किया,
लक्षमण को जियों थे राम प्यारे,
आप भी हम को हो यों ही प्रिय,
जो सभ भी हों सब आपके काम वो सँवरे,
मंगल,शान्ति,उल्लास हो भीतर में बाहर में,
और अव्वल अव्वल रहो हर प्रतिस्पर्धा में,
खूब मान सम्मान हो आपका जग में,
यही हमारी भी है कामना भैया,
लक्षमण को जियों थे राम प्यारे,
आप भी हम को हो यों ही प्रिय!