तन्हाई में यूं हर कोई अपना हो जाता है

शहर छोड़ के 
कोई भी जाता है,
घर मेरा सूना हो जाता है,

आलम में तन्हाई में
यूँ ना चाहते हुए
हर कोई अपना 
हो जाता है!

आलम-ए-तन्हाई से उकताकर

था कैद में तो,
कभी उसे मरने का
ख्याल ना आया,

ज़िन्दगी चाहे
उसकी जैसी भी थी,

रिहाई हुई तो
आलम-ए-तन्हाई
से उकताकर उसने
खुदकुशी कर ली!