गुरुवर द्रोण चलें हैं,
सब सतब्ध मौन खड़े हैं,
ऊपर ऊपर सब हसें हैं,
लेकिन मन भरे भरे हैं!
नगरी पूरी बसा के,
दीप हज़ारों जला के,
कहते हैं अब जाना होगा,
द्वार नगर के खड़े हैं,
गुरुवर द्रोण चलें हैं!
परिवर्तन सृष्टि का नियम है,
चलते रहना, बढ़ते रहना
यही तो जीवन है,
जाने सब हैं सब कुछ,
कुछ देर और चलते साथ
फिर भी सभ यही कहें हैं,
गुरुवर द्रोण चलें हैं!
अपने मोह से उठ
अब जब सब देखे हैं,
तो एक स्वर में यही कहते हैं,
जाओ जहाँ भी आप,
यश हो, कीर्ति हो,
शुभ हो, मंगल हो,
हमारी आशा, प्राथना,
आपके लिए सदा ये है,
गुरुवर द्रोण चलें हैं!