कोई और ज़िन्दगी मिली तो
हम भी अपने शोंक पुरे करेंगे,
अब के बार सब फ़र्ज़ चुकता हो जाएँ
शायद इतना ही काफी है!
मुल्क भले ही आज़ाद हो गए हों,
गुलाम बनाना चाहे ही कानून न हो,
पर ये रोटी, कपड़ा, मकान, दुनियादारी,
ज़िम्मेवारी सब ने बाँध रखा है!
देखते हैं दुनिया को सब ठीक लगता है,
झांकते हैं अंदर तो अच्छा नहीं लगता है,
अजीब से धक्के से लगते हैं,
कुछ अंदर से कुछ बाहर से!
और हाँ बस चले जाते हैं,
इसी उम्मीद पे के कोई जादू होगा,
कोई राह निकलेंगे किसी दिन तो,
कोशिशें हमेशा तो नाकाम न होंगी!