जंगल के रस्ते में पाताल सी गहरी खाई

जंगल के रस्ते में पाताल सी गहरी खाई,
आज फिर चलते चलते तेरी याद आई!

तिनकों से बना घोंसला हुआ छिन्न छिन्न ,
काली घटा यूं तूफ़ान बनके लहराई !

थर थर काँपा धरती का कोना कोना,
पत्थर की दो दीवारें आपस में टकराई!

इतने तारे टूट के घिरे आसमान से,
ज़मीन पे आग की नहर निकल आई!

यूं गुजरी हम पे एक तेरी याद से,
पूरी कायनात में ही कयामत आई!

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