मैं तेरी दुनिया से कैसे मोहब्बत से पेश आऊँ

मैं तेरी दुनिया से कैसे मोहब्बत से पेश आऊँ,
यहां हर दूसरा शख्स बैठा है,
मेरे खून में रोटियां डुबोने को,

एक दिन मैं भी इन सब के जैसा हो जाऊंगा,
बस फिकर अपनी अपनी,
बाकी होता है जो होने दो,

खून के आंसू सुनते आएं है उस दिन नज़ारा होगा,
हर मुफ़लिस को जब ठुकरा दूंगा,
हाल बेहाल दर बदर रोने को,

करे आज जितनी बेरुखी की हदें पार करनी इसको,
कल मैं भी सोचूंगा नहीं, किसी की
दुनिया है खत्म होने को,

मैं तेरी दुनिया से कैसे मोहब्बत से पेश आऊँ....

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