बुट्टा

कुछ बरस पहले एक बार,
समंदर की सैर को गए थे हम लोग,
मैं किनारे पे ही बैठा रहा,
और वो दूर निकल गयी लहरों के पास,

कुछ देर बाद लोटी,
दोनो हाथों में कुछ लिए वो,
और दोनो मुट्ठियों से मेरी झोली
भरने लगी वो सीपियों से,

मुझे यूं लगा जैसे आसमान
मेरी झोली में तारे उंडेल रहा हो,
भोलेनाथ जैसे मेरी झोली में
भागीरथी उतार रहा हो,

और वो सागर सी मुस्कान
लिए कह रही थी मुझसे,
अभी जाऊँगी जब फिर
तुम्हारी लिए और ले के आउंगी,

पर मैंने कहा तुम तो बुट्टा
लेने गयी थी ना, वो कहाँ है
"अरे हाँ वो तो मैं भूल ही गयी"
और वो फिर चली गई लहरो के पास,

क्या उमर होगी तब उसकी
शायद सात या आठ!

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