तुम कहाँ हमारे साथ चले आए

तुम कहाँ हमारे साथ चले आए,
हम खुद भटकते फिरते हैं,
रास्ता तुम्हें क्या बताएँ,

रोशनी होती हमारे पास तो,
खुद न राह तलाश लेते,
तुम्हारे रास्ते में हम,
कहाँ से चिराग जलाएँ,

जाओ किसी और को
अपना रहबर बनाओ,
इमकाँ उसी में है के
तुम्हें रहनुमा मिल जाए!

No comments:

Post a Comment