ये घर कल भी तेरा था, ये घर आज भी तेरा है

ये घर कल भी तेरा था,
ये घर आज भी तेरा है,
हम कबूतरों का क्या,
चार दिन बसेरा है,

हम तो हो गए थे परदेसी,
जब निकले घर से पहली बार थे,
हमारा आना जाना क्या,
बस फकीरों का फेरा है,

रोशनी कहाँ होती है पागल
कभी घर में चिरागों से,
तू आए तो होता है ये रोशन
नहीं तो फिर अँधेरा है,

मत मान तू दुनिया की,
ये घर है तेरे लिए अब पराया,
इसकी धड़कन सुन कभी
लेता नाम तेरा चार चुफेरा है,

ये घर कल भी तेरा था,
ये घर आज भी तेरा है...

No comments:

Post a Comment