किसी के भी ना होने से
दुनिया को कोई फरक नहीं पड़ता,
सोचना तो हर इंसान ने ये होता है
उसके होने से क्या हो सकता!
अपनी मैं से ऊपर उठ के,
सबके लिए क्या है वो कर सकता,
कितने दिल वो रोशन कर सकता,
कितने रस्तों का चिराग वो बन सकता,
किसी के भी ना होने से
दुनिया को कोई फरक नहीं पड़ता!
बड़ी दुनिया है अभी भी बर्बाद सी,
नज़र नहीं, न ही कोई इलाज़ भी,
क्या कोई करके एज़ाज़ वो
ज़िन्दगी उनकी आसान कर सकता,
किसी के भी ना होने से
दुनिया को कोई फरक नहीं पड़ता!
मैंने चुनी है अभी तो राह-ऐ-सुखन,
तान की दे सकूं सोच जोड़ सकूं मन,
और देखेंगे आगे और क्या है हो सकता,
किसी के भी ना होने से
दुनिया को कोई फरक नहीं पड़ता!
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