2025

ये वक़्त ने इस बरस 

कैसी सजा दी है,

शुरू हुआ तो, 

सर से छत छीन ली,

खत्म होने को है, 

पाऊँ के नीचे से अब

ज़मीन खींच ली है,


काश वक़्त का 

कोई पता होता,

मैं जाता और 

इसको धर लेता,

मार देता इसको, 

या फिर अपने 

आप को लाचार पा,

इस बे-हिस के घर 

के सामने, आत्मदाह 

कर लेता! 


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छत छीन ली, 

ज़मीन खींच ली, 

वक़्त ने इस साल -

मैं बस देखता रहा, 

करता भी क्या?

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