चल चलते हैं साथे,
एक साँझा सपना देखते हैं,
कहा था मैंने उसे,
कुछ नहीं हासिल होगा,
एक दूजे को काट के,
पर वो माना ही नहीं,
ज़िद्द उसकी वही रही,
अब हम दोनो को
नचाता है ज़माना
अपने इशारे पे,
न उसे कुछ हासिल हुआ,
न कुछ मुझे!
एक साँझा सपना देखते हैं,
कहा था मैंने उसे,
कुछ नहीं हासिल होगा,
एक दूजे को काट के,
पर वो माना ही नहीं,
ज़िद्द उसकी वही रही,
अब हम दोनो को
नचाता है ज़माना
अपने इशारे पे,
न उसे कुछ हासिल हुआ,
न कुछ मुझे!
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