आदमी के लिए बस है आदमी,
महलों से तन्हा रोते गए राजा जी,
सह सके ने बाण एक विरह का,
वीर, पराक्रमी, सूर्यवंशी, चक्रवर्ती,
आदमी के लिए बस है आदमी....
राम जी को तो चलो वनवास हुआ था,
लक्ष्मण को तो उस त्रासदी ने न छुआ था,
फिर उन्होंने ने क्यों राज नगरी त्याग दी,
आदमी के लिए बस है आदमी.....
भरत के लिए तो सब अच्छा ही किया था,
राज उसके लिए माँ ने सुनिश्चित किया था,
फिर भी कहा उसे ही क्यों कुलटा कुल्छीनि,
आदमी के लिए बस है आदमी.....
पर कोई कैकयी इस बात को क्या जाने,
मंथरा मन के आगे रिश्तों का मोल न पहचाने,
अपने ही हाथों अपनी ग्रहस्ती उजाड़ ली,
आदमी के लिए बस है आदमी.....
महलों से तन्हा रोते गए राजा जी,
सह सके ने बाण एक विरह का,
वीर, पराक्रमी, सूर्यवंशी, चक्रवर्ती,
आदमी के लिए बस है आदमी....
राम जी को तो चलो वनवास हुआ था,
लक्ष्मण को तो उस त्रासदी ने न छुआ था,
फिर उन्होंने ने क्यों राज नगरी त्याग दी,
आदमी के लिए बस है आदमी.....
भरत के लिए तो सब अच्छा ही किया था,
राज उसके लिए माँ ने सुनिश्चित किया था,
फिर भी कहा उसे ही क्यों कुलटा कुल्छीनि,
आदमी के लिए बस है आदमी.....
पर कोई कैकयी इस बात को क्या जाने,
मंथरा मन के आगे रिश्तों का मोल न पहचाने,
अपने ही हाथों अपनी ग्रहस्ती उजाड़ ली,
आदमी के लिए बस है आदमी.....
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