उसने गरीबी देखी थी मैंने देखा था फसाद

उसने गरीबी देखी थी
मैंने देखा था फसाद,
वो तो उभर आया है
अपने हालातों से,
मुझे करता है वक़्त
वो आज भी बर्बाद,

उसके घर में अंधेरा था
मेरा दिल बुझ गया था,
मैं ढूंढता फिरता हूँ
लौ दिल के लिए,
वो गया बाज़ार
खरीद लाया चिराग,

उसको मालूम था
ज़िंदा रहेंगे तो मुश्किलें
हल हो ही जाएँगी,
हमको ये भी मालूम नहीं
मर के भी पाएगा
दिल क्या गम से निजात,

फिर जी लेता है आदमी
किसी न किसी तरह
पेट बाँध के मुफलिसी में,
लेकिन जीते जी मारते हैं,
सदमा, फ़िराक़, हादसा,
खौफ, दहशत, फसाद!

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