आपके साथ अब रहा भी नहीं जाता,
आप को छोड़ के जाने को जी भी नहीं चाहता,
एक अजीब सी कश्मकश में हर दिन है जाता!
जो ढूंढते थे रहनुमा लगता है वो आप ही तो हो,
जो लगा दे मझधार से पार किनारे
लगता है वो माजी आप ही तो,
फिर जाने क्यों आपकी दिखाई
राह पे कभी कभी यकीन नहीं आता,
एक अजीब सी कश्मकश में हर दिन है जाता!
आप जरूरतों को तो शायद समझते हो,
लेकिन आप ख्वाहिशो को पड़ नहीं पाते हो,
जो फलक से सितारे तोड़ने के सपने लेके आया हो,
आप उसे महज़ रोटियों से खुश करना चाहते हो,
शायद यहीं अपना रास्ता मेल नहीं खाता,
एक अजीब सी कश्मकश में हर दिन है जाता!
बीच छोड़ चले जाएँ सब तो गुनाह है,
चलते जाएँ यूं ही तो सजा है,
क्या करे या न करे कुछ समझ नहीं आता,
एक अजीब सी कश्मकश में हर दिन है जाता!
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