छोड़ के दूर निकल जाएँ कहीं,
या फिर डूब के मर जाएँ कहीं,
ये कैसी जगह आ गए हैं हम,
किसी को किसी की फ़िक्र नहीं,
जितना मर्ज़ी कर लो थोड़ा है,
काम पूरा यहाँ होता ही नहीं,
इनका क्या पता कब मुँह फेरें,
शिकवे बीवी के भी हो गए कई,
बच्ची जहाँ छोड़ी वहीँ खड़ी है,
abc तक अभी लिख पाती नहीं,
इश्क में पागल हुआ था मजनू,
रोटी के लिए हम न हो जाए कहीं,
मरने से अब डर तो नहीं लगता,
उसके लिए भी पर मोहलत नहीं,
घर टूटे या जिस्म से जान छूटे,
इससे पहले ढूंढे और काम कहीं,
ये कैसी जगह आ गए हैं हम,
किसी को किसी की फ़िक्र नही!
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