दोस्तो

दोस्तो कोई तो राह निकालें, 

ग़ैरों के हाथ ज़िन्दगी दे 

अपने दिन नहीं बदलने वाले,


दोस्तो हमीं तो हैं ये कारखाने 

ये दफ्तर, ये mill, ये फैक्टरी 

चलाने वाले, रातों को अपना 

पसीना बहा कर, तमाम जरूरत 

और सहूलत के सब सामान 

त्यार करने, बनाने वाले,


दोस्तो अब हमें उठना होगा

बढ़ना होगा, दाओ लगाना,

खेल को समझना, परख 

के खेलना, खेल के गिरना, 

गिर के उठना संभलना,

आगे बढ़ के अपने नाम 

का सिक्का चलाना होगा,


दोस्तो चलो एक मुट्ठी 

हो जाएँ, मिलें जो कभी 

बस अपने अपने दुःख 

ही ना रोएं, एक नयी सुबह

के आगाज़ के लिए 

कुछ अपने मनसूबे बनाएं,


और चल पड़ें उन बुलंदिओं

की तरफ, जहाँ तक इन 

बंदिशों में खाब तक न देख पाएं,


यक़ीन मानो दोस्तो हम में

हैं हुनर के हम ये घुटे घुटे 

दिनों से निजात पा के 

अपनी मर्ज़ी की मंजिल 

चुन सकें, पा सकें और 

अपनी मर्ज़ी की ज़िन्दगी जी पाएं!

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