तुझे चाह तो लिया मगर, तुझे पाने की कोई राह न मिली,
फूल कोई खिलता ही नहीं, ये कैसी मुझको ज़मीन मिली,
कहूँ इसे किस्मत का खेल, बदनसीबी, ये मेरी कोई कमी,
भटक रहे हैं अब भी तलाशे यार में शहर शहर गली गली,
जो साथ थे वो दूर हो गए, जो जानते थे सब वो भूल गए,
अपना साया अब तो बस साथ है, नींद भी गयी छोड़ चली,
कोई रहनुमा मुझे अब मिले, कोई रहबर मुझे राह दिखाए,
बुहत बीत चुकी है ज़िन्दगी और अब शाम होने को है चली,
कहीं अफ़सोस ही मेरी ज़िन्दगी का सरमाया ना बन जाए,
के चले तो आखिरी सांस तक पर कोई मंजिल न मिली!
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