मुझे मिटा दो, फिर से बना दो, उसे अच्छा लगे, वैसे सजा दो,
अगर एक यही आखिरी रास्ता है, देख लो, ये भी आजमा दो,
जो गुज़र रही है उसके बिना, हर घडी, हर रहगुज़र से है गिला,
मुझे तोड़कर ओ कूज़ा-गर, चाक पे एक बार फिर से चढ़ा दो,
क्या मजा बिना चाह जीने का, ग़म भुलाने के लिए पीने का,
हो जिसकी भी वो मुंतजिर, मुझे बस वही लिबास पहना दो,
वही मेरी मंजिल वही मेरा मुकाम है वही सुबह वही शाम है,
जो भी हो सके जो भी बन सके मुझे उसके दिल में बसा दो,
बस रूह रखना कायम मेरी, इस में है मेरी चाहत छुपी,
उसकी मर्ज़ी के सांचे में डाल के उसके हाथों में थमा दो!
No comments:
Post a Comment