ऐ जान-ए-जान तुम
शाद आबाद रहा करो,
तुम जो थक के बैठ गयी
मुझे भी रुकना पड़ जाएगा,
अभी सफर बुहत पड़ा है
अभी मंज़िल बुहत दूर है,
जो कोई दुश्वारी पड़ गई,
तो इस उजले उजले मंजर से
लौट के जाना पड़ जाएगा,
कश्ती दो चप्पू से चलती है,
तुमसे जो अपना छूट गया तो,
सफीना हमारा डूब जाएगा,
आशिआना हमारा बिखर जाएगा,
तेरी मोहब्बत तेरी चाह है,
जो रोज़ नए सपना सजा रहा हूँ,
तुम जो साथ ना रही तो
दम मेरा भी निकल जाएगा,
ऐ जान-ए-जान तुम
शाद आबाद रहा करो!
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