उनका आपस में मसला तो कुछ भी नहीं था,
कभी जमाना तो कभी घर से ताना आ गया,
देख लिए थे चलने से पहले ख़ाब इतने हसीन,
चले जो तो हक़ीक़तों से अफसाना टकरा गया,
कुछ मसरूफियतों ने घेर लिया रिफाकत को,
नाजुक चाहत पे ही वक़्त का निशाना आ गया,
और धीरे धीरे देरियां दूरी, दूरियाँ दरार बन गई,
अकीदत गई, अदावत सुनना सुनाना आ गया,
चौदहवीं का चाँद जिससे दोनो बातें करते थे,
चौंक उठा देख के ये क्या दर्दमंदाना आ गया!
No comments:
Post a Comment