साथ थे जब तक सब सही था,
बात की जाने की तो
जैसे कभी रिश्ता ही नहीं था,
क्या क्या नहीं कहा उन्होंने
एक खता के लिए, जैसे किया
कभी कुछ भी ना सही था,
उन्स की तम्मना तो उनसे कभी भी न रही,
पर इस तरह बेइज्जत करेंगे,
हमने कभी सोचा नहीं था,
सुबह शाम जिसका हम परचम लेकर चले,
वही हमारी आबरू मिट्टी में मिला दे,
ऐसे तो पहले देखा नहीं था,
शायद उनका अपना यही असूल है,
जब तक कोई साथ चले तो ठीक,
जब दूर जाए तो ना छोड़ो उसे कहीं का,
हमारी खता की वक्त हमको सजा दे,
बस कभी उनको रोक के इतना पूछे,
क्या इतना संग दिल होना ज्यादा नहीं था?