इतनी आशनाई है फिर भी तन्हाई है,
ये खलिश न जाने कहाँ से आई है,
जो मिला उसका जश्न कम है मनाता,
जो ना मिला उसके लिए दिल सौदाई है,
शायद मैं ही गया हूँ वक्त की तरह,
जो कभी आशिक तो कभी हरजाई है,
या मेरा मिजाज़ ही ऐसा हो गया है,
अच्छा लगने गया इसे ज़ौक-ए-गुदाई है,
चलो तुम मेरी ज्यादा परवाह न करो,
हर किसी की अपने आप से ये लड़ाई है।
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