अमल

पड़ लेना,

समझ लेना,

अपना लेना,

तीन अलग अलग 

बातें होती हैं,


एक आँखों में,

दूसरी बातों में,

तीसरी रग-ए-जाँ

में होती है,    


एक काँसा,

दूसरा चाँदी,

तीसरा बेशकीमती  

मोती है, 


पड़ लेता हूँ,

समझ लेता हूँ,

बस यही है 

एक नदामत,

अमल में लाने में 

इतनी देरी 

क्यों रहती है!  

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