अच्छा बुरा जो भी हो सब कुछ बताना पड़ता है

अच्छा बुरा जो भी हो सब कुछ बताना पड़ता है,

सलीका कुछ सीखना कुछ कुछ बनाना पड़ता है,


निकल पड़ते हैं अपने भी कभी कभी बर्बाद राहों पे,

आँखें दिखा के उनको भी वापिस लाना पड़ता है,


ये कैसी दोस्ती तुम कहो ठीक, वो हो खत्म होने पे,

सख्ती से कभी कभी यारों को भी समझाना पड़ता है,


बिगड़ते ही जा रहो जो दिन-बा-दिन हालात और,

बड़ों के सामने फिर आवाज़ को उठाना पड़ता है,


बोलते तो हैं सभी पर कब, कहाँ, कितना और कैसे

आने में हुनर और फनकारी एक ज़माना लगता है! 

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