करते नहीं तुमको दिन में एक भी,
होना कई बार सलाम चाहिए,
इस नए भारत को एक नहीं,
सौ सौ और कलाम चाहिए,
देश के लिए जो जिए,
देश के लिए ही जो सब करे,
अपना निज्ज सब रख के परे,
अपने कर्तव्य का निर्वहन करे,
हमको ऐसे इंसान चाहिए,
इस नए भारत को एक नहीं,
सौ सौ और कलाम चाहिए,
शकित ही सौंदर्य है,
जिसकी भुजाओं में बल
शमा भी उसी वीर को
ही शोभनीय है,
कह गए राष्ट्र कवी दिनकर,
जो दे लड़ने के लिए वीरों को
नए युग के लिए अस्त्र शस्त्र,
ब्रह्मा जी से हमको
ऐसे और वरदान चाहिए,
इस नए भारत को एक नहीं,
सौ सौ और कलाम चाहिए,
हर युग में ही,
ज़मीन को तो है ही,
अस्मिता को भी खतरा है,
पश्चिम उत्तर दोनों ही
दुनिया पर हक्क जमाना
चाहते अपना अपना है,
और जीने के लिए ज़मीन
और सम्मान एक सामान चाहिए,
इस नए भारत को एक नहीं,
सौ सौ और कलाम चाहिए!
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