दो लड़कियों की है
मेरे कन्धों पे ज़िम्मेदारी,
एक छोटी सी चिड़िया,
एक फूलों की डाली,
एक छोटा सा गुलशन हमारा,
जिसका मैं हूँ माली,
चिड़िया तो चीं-चीं कर के
जब चाहे बुला लेती
सब काम रुकवा के भी
अपने पास मुझे बिठा लेती
जिसको मालूम है बस
अभी तो खेल खिलोने
ना मानो उसकी बात तो
करती है ज़िद्द या लगती रोने,
पर डाली मुझ से
कुछ भी नहीं कहती,
चुपके चुपके मुझे
बस देखती ही रहती,
उठूँ देर से या आऊं
देर से, मेरी राह में
पलके बिछाए बैठी रहती,
इन दोनों के लिए
मैं दिन रात हूँ लगाता,
सपने पीछे छूट भी जाएँ
फिर भी हूँ मुस्काता,
इन दोनों के लिए सब
खुशियाँ हूँ ले आना चाहता,
इन दोनों को ज़िन्दगी के
सब दुखों से बचाना हूँ चाहता,
चाहे मैं जानता हूँ,
जैसे दिन मैं बिताता हूँ,
अक्सर अब कभी कभी
मैं तो ऊब सा जाता हूँ,
फिर भी फिरता हूँ
इन दोनों के लिए
बन के दर दर का सवाली,
एक छोटी सी चिड़िया,
एक फूलों की डाली,
एक छोटा सा गुलशन हमारा,
जिसका मैं हूँ माली!
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