हयात सफर के सिवा और कुछ भी नहीं,
आखिर सब की एक दिन तएशुदा यकीनन ही,
बस चलते जाओ कायनात के इस अजूबे में,
आगाज,अंजाम जिसका किसी को जाहिर नहीं,
न उलझना कभी इस पेचीदगी में क्यों है, क्या है,
सालों बर्बाद हुए हैं आया बंदे के हाथ कुछ भी नहीं,
हां बस कह गए हैं कुछ न कुछ सब इसके बारे में,
बना लो तुम भी अपने लिए खूबसूरत ख्याल कोई,
और ये ख्वाब, ये मंजिले, ये मनसूबे सब सराय हैं,
सुकून मिलेगा कभी कही किसी एक में रुक के नहीं,
ये रिवायत, ये रीति रिवाज, जो ठीक लगें तो ठीक,
बेवजह इनके बोझ के तले दबना और झुकना नहीं,
ये मज़हबी, ये सियासती लोगों की दलीलें,
होती अक्सर खुदगर्ज़ी के सिवा कुछ भी नहीं,
इनको देखते रहना पर जरा थोड़ी दूरी से,
ज्यादा इनके पास आ इस में उलझना नहीं,
ये मोहब्बत, ये चाहत, ये उल्फत, ये रिश्ते नाते,
ये हैं एक बड़ी बुनियाद इसको हमेशा रखना सही,
चलो देखते हैं कल क्या फिजा नया रंग लाती है,
आज के लिए, जितना देखा सीखा उतना ही सही।
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