कब तक

असूल परस्त लोगों के लिए

कभी कभी मैं ये सोचता हूँ ,
कब तक मैं यो ही लड़ता रहूंगा!
रस्ते जो हो रहे हैं तेडे दिन बो दिन ,
कब तक मैं सीधा उन पर चलता रहूंगा !

कब तक मैं उछलते हुए कीचड़ के चीतों से,
पाक दामन अपना बचाता रहूंगा !
कब तक मैं लोगों की नज़रों से गिरकर ,
अपनी नज़रों में उंचा उठता रहूँगा !

मिलती न हैं आदतें मेरी औरों से ,
जाने फिर भी कब तक में मर्ज़ी अपनी करता रहूंगा !
मेरा रास्ता है सही ,पर फिर भी कोई साथी नहीं,
जाने कब तक में अकेला ही चलता रहूंगा !

जिद्द अपनी के कारण गवाया है कितना कुछ ,
जाने और कब तक में लुटता लुटाता रहूंगा!
दो चार लफ्जों के असूलों को पालने की खातिर,
जाने कब तक दिल में सब का दुखाता रहूँगा !

दर्द,तकलीफ और तन्हाई ही पाई है अब तक रस्ते पे,
जाने और कब तक यह सब मैं सहता रहूँगा !
तकलीफ छुपाकर जो सीख लिया है हँसना,
जाने कब तक मैं गम को इस तरह दबाता रहूँगा!

दिल शोक मैं डूबता रहा है जो चलते चलते,
जाने कब तक मैं इसको सहलाता रहूँगा!
जिसम पे जो होते रहे हैं झुलम खुद से ,
जाने और मैं कब तक मैं यों करता रहूँगा !

असूलों का बोज दोह्कर मैं अब थकने लगा हूँ ,
जाने और कब तक मैं ऐसे ही चलता रहूँगा !
क्या मिलता है मुझको दोह्कर असूलों का बोज,
जाने दुनिया का सवाल मुझसे यह कब तक रहेगा!

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