अपना आप छोटा लगने लग गया

 तुम्हारे लिए इतने ख़ाब सजा लिए, 

अपना आप छोटा लगने लग गया,

तुम तो शायद हाँ कर भी देती, 

मैं अपने आप को खारिज कर गया,


तुम्हारे पास तो सब कुछ ही था, 

सीरत भी सूरत भी रुतबा भी दौलत भी,

मैंने अभी कमाना शुरू किया था, 

जेब खाली देख के अपनी डर गया,


क्या सोच के तुम्हारे पास मैं आता, 

किस उम्मीद पे हाथ आगे बढ़ाता,

मैं जानता था तुम हकीकत में जीती 

हो, अफसाना मेरा वहीं मर गया,


धरती अम्बर का मेल कहाँ होता है, 

बस क्षितिज पे खेल सा होता है,

दो सीढ़ी जो चढ़ा था चाह की, 

सोच के फिर वो भी नीचे उतर गया!


चलो जो हुआ सो हुआ, ज़िन्दगी 

को कोई क्यों खेलें समझ के जुआ,

कुछ मुझसे सही न हो पता, तुम 

इलज़ाम देती के मैं धोखा कर गया! 

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