में जो यह लिखता रहता हूँ ,
जिसे में कविता कहता हूँ ,
औरों के लिए फिजूल की बातें ही सही,
पर अपनी तो जिंदगी है यही!
खोया रहता हूँ में ख्यालों में,
कुछ सुल्जे कुछ अनसुलझे सवालों में,
औरों के लिए फिजूल जाया वक़्त ही सही,
पर अपनी तो जिंदगी है यही!
करता रहता हूँ बातें हवा से,
कुछ पूछता रहता हूँ दीवारों से ,
औरों के लिए में पागल ही सही ,
पर अपनी तो जिंदगी है यही!
फिरता रहता हूँ तनहा सुनसान राहों पे,
देखता रहता हूँ सब कुछ हैरान निगाहों से,
औरों के लिए मैं एक परेशानी ही सही,
पर अपनी तो जिंदगी है यही!
दायिरों में सिमट कर में न रहता हूँ ,
ढल गए हैं सब जैसे वैसे में न ढलता हूँ,
औरों के लिए यह मेरी नादानी ही सही,
पर अपनी तो जिंदगी है यही!
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