जीना है तो कीमत चुकानी पड़ेगी,
अपनी मर्जी मनमानी नहीं चलेगी!
चूल्हा जलता रखने के लिए घर का,
खाब की लकड़ी तक जलानी पड़ेगी!
बिन यारम के सर्द ठंडी है हर रात,
आह के अंगारे से देह सुलगानी पड़ेगी!
वो बात जो सोचा था किसी से न कहेंगे,
इलाज़ चाहिए तो नब्ज़ दिखानी पड़ेगी!
नहीं मिला हाथ वो जो चाहिए था तो क्या,
जो मिले उसी को उंगली थमानी पड़ेगी!
अपनी मर्जी मनमानी नहीं चलेगी!
चूल्हा जलता रखने के लिए घर का,
खाब की लकड़ी तक जलानी पड़ेगी!
बिन यारम के सर्द ठंडी है हर रात,
आह के अंगारे से देह सुलगानी पड़ेगी!
वो बात जो सोचा था किसी से न कहेंगे,
इलाज़ चाहिए तो नब्ज़ दिखानी पड़ेगी!
नहीं मिला हाथ वो जो चाहिए था तो क्या,
जो मिले उसी को उंगली थमानी पड़ेगी!
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