पर सच कहता हूँ

मैं सच कहता हूँ , मुझे कोई ग़म नहीं,
में चुप चुप सा रहता हूँ सिर्फ इस लिए,
मुझे जादा बोलने की आदत नहीं !

में अकेला तनहा तनहा फिरता रहता हूँ,
बस हो गयी है आदत मुझे यो ही जीने की,
पर सच कहता हूँ मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं!

मेरी आखों में जवानी वाली मस्ती नहीं ,
और में खोया खोया गुमसुम सा रहता हूँ,
में हैरान हूँ थोडा जिंदगी से,
पर सच कहता हूँ मुझे कोई परेशानी नहीं!

कहा है मैंने दोस्तों से के मुझे अब कोई चाहत नहीं,
और में बस गुजारा सा करता रहता हूँ ,
हाँ थोडी कम है मुझे मोहब्बत जिंदगी से ,
पर सच कहता हूँ मुझे जिंदगी से नफरत नहीं!

किसी मुकाम पे पुहँचने की मुझको जल्दी नहीं ,
पर फिर भी किसी न किसी काम में लगा रहता हूँ ,
क्या करु मुझे फुर्सत के लम्हों में भी आराम नहीं,
पर सच कहता हूँ यह न है के मुझे आराम की चाहत नहीं!

ऐसा हो गया हूँ क्यों में ?, शायाद बेवजाह नहीं,
तेज चलती हवा उखाड़ जाती है जड़ से पेड़ कोई ,
पर उखड जाने के बावजूद भी खडा रहता है सालों गिरता नहीं,
मेरे साथ भी हुआ है शायद यही , पर कब कहाँ मुझे खबर नहीं!

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