ਚੰਗੇ ਲੱਗਣ ਪਏ ਰੁਝੇਵੇਂ

ਚੰਗੇ ਲੱਗਣ ਪਏ ਰੁਝੇਵੇਂ,

ਤੇਰਾ ਚੇਤਾ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦਾ,

ਬੀਤਿਆ ਵਕਤ ਤੂਫ਼ਾਨ

ਖਿਆਲਾਂ ਚ ਨਹੀ ਉਠਾਉਂਦਾ,


ਉਲਝਣਾਂ  ਹੀ ਉਲਝਣਾਂ,

ਪਰੇਸ਼ਨਿਆਂ ਹੀ ਪਰਸ਼ੇਨਿਆਂ,

ਨਾ ਲੱਜਤ ਕੋਈ ਦਿਨ ਵਿੱਚ,

ਨਾ ਸ਼ੋਖ਼ੀ ਕੋਈ ਰਾਤ ਵਿੱਚ,

ਚਲ ਸ਼ਾਮਾਂ ਦੇ ਇੱਕਰਾਰ ਤੇ

ਚਿੱਤ ਹੋਲਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ,

ਚੰਗੇ ਲੱਗਣ ਪਏ ਰੁਝੇਵੇਂ...


ਪਤਾ ਹੀ ਨਹੀਂ ਮੌਸਮ 

ਕਿਹੜੇ  ਚੱਲੀ ਜਾਂਦੇ ਬਾਹਰ,

ਕਦੋਂ ਆਈ ਪਤਝੜ

ਤੇ ਕਦੋਂ ਗਈ ਬਹਾਰ,

ਬੱਸ ਸੌਣ ਦੀ ਰੁੱਤੇ

ਸੁਫ਼ਨਾ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦਾ,

ਚੰਗੇ ਲੱਗਣ ਪਏ ਰੁਝੇਵੇਂ...


ਨਹੀਂ ਚੰਗੇ ਲੰਘਦੇ ਤਿਉਹਾਰ,

ਨਹੀਂ ਆਰਾਮ ਕੋਈ ਐਤਵਾਰ,

ਨਹੀਂ ਚੰਗੀ ਬੁਨਿਆਦ,

ਕੀ ਪਤਾ ਕਿੰਨੀ ਕੂ ਮੁਨਿਆਦ,

ਚਲ ਭੂਚਾਲ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦਾ,

ਚੰਗੇ ਲੱਗਣ ਪਏ ਰੁਝੇਵੇਂ...

ਯਾਦ

ਇੱਕ ਜਗਹ ਬਹਿਨਾ 

ਤਾਂ ਤੇਰੀ ਯਾਦ

ਘੇਰ ਘੇਰ ਮਾਰ ਦਿੰਦੀ

ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਤੁਰਿਆ 

ਫਿਰਦਾ ਰਹਿਨਾ

ਤੇਰੀ ਯਾਦ ਵੀ ਨੀ ਆਉਂਦੀ

ਤਬੀਅਤ ਵੀ ਠੀਕ ਰਹਿੰਦੀ

ਛੱਡ, ਓ ਦਿਲ ਜਾਣੀਆਂ

 ਛੱਡ, ਓ ਦਿਲ ਜਾਣੀਆਂ,

ਆਪਣਿਆਂ ਤੇ ਆਪਣਿਆਂ 

ਦੀਆਂ ਕਾਹਦੀਆਂ ਮਿਹਰਬਾਨੀਆਂ,


ਆਪਣੇ ਤਾਂ ਹੁੰਦੇ ਹੀ ਨੇ ਇਸੇ ਲਈ,

ਦੁੱਖ ਵੇਲੇ ਨਾਲ ਖੜ ਜਾਣ,

ਆਪਣੇ ਤਾਂ ਹੁੰਦੇ ਹੀ ਨੇ,

ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਵੇਲੇ ਝੂਮਰ ਪਾਣ,

ਆਪਣਿਆਂ ਦੀਆਂ ਆਪਣਿਆਂ

ਲਈ ਕਾਹਦੀਆਂ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ,


ਕਰਨੇ ਨੇ ਹਿਸਾਬ ਕਿਤਾਬ ਕੀ,

ਰੱਖਣਾ, ਕੀਤਾ ਇੱਕ ਦੂਜੇ ਲਈ ਯਾਦ ਕੀ,

ਮੋੜਨ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਨਾ ਕਰ,

ਗੱਲਾਂ ਲੱਗਣ ਬੇਗਾਨੀਆਂ!

उनका आपस में मसला तो कुछ भी नहीं था

उनका आपस में मसला तो कुछ भी नहीं था,

कभी जमाना तो कभी घर से ताना आ गया,


देख लिए थे चलने से पहले ख़ाब इतने हसीन,

चले जो तो हक़ीक़तों से अफसाना टकरा गया,


कुछ मसरूफियतों ने घेर लिया रिफाकत को,

नाजुक चाहत पे ही वक़्त का निशाना आ गया,


और धीरे धीरे देरियां दूरी, दूरियाँ दरार बन गई,

अकीदत गई, अदावत सुनना सुनाना आ गया,


चौदहवीं का चाँद जिससे दोनो बातें करते थे,

चौंक उठा देख के ये क्या दर्दमंदाना आ गया!

इन्हीं से मेरी जीत होगी

ज़िंदगी की जंग पे निकला हूं

तेरे प्यार की ढाल ले कर,

बाहर आज भी सर्दी बहुत है,

तेरी चाह की शाल ले कर,


तेरी आँखों की खुशबू,

तेरी बातों का लम्स,

तेरी यादों के गुलाब,

तेरे एहसासों की रोशनी के साथ,


और जब भी कभी 

सुख जाता हूँ मुरझा जाता हूँ,

भीग जाता हूं तेरी हसी की बारिशों में,


फिर लहलहाने लगता हूं

फसलों की तरह

दो पल तुम्हारे पास बैठने के बाद,


बस इसी तरह साथ देते रहना,

दूर हो, के पास हो,

गुनगुनाते रहना गीत ज़िंदगी के,

उम्मीद के, आरज़ू के,


यही मेरे रस्ता आसान करते हैं,

इन्हीं से मेरी जीत होगी।

बीमार

लफ्ज़ आहिस्ता से रखो,  

धीमे लहज़े में बात करो,

वो बीमार भी है,  

ना उम्मीद भी,  

घबराया हुआ भी,


इस वक्त उसको  

नसीहत की नहीं,  

साथ की ज़रूरत है,


साथी वो जो  

उसी की सुन सके,  

हाथ दे के बस  

खड़ा कर सके,


क्यों सोचते हो  

कि उसे कुछ मालूम नहीं?

उसे चाह चाह के पूज पूज के मैने खुदा कर लिया

उसे चाह चाह के पूज पूज के मैने खुदा कर लिया,

बस इन्हीं बातों ने मेरी, मुझे उससे दूर कर दिया,

वक़्त फिर पलटेगा

आज जिन बातों पे रो रहे हैं,

कल उन्हीं बातों पे हसेंगे,

मौसम बदलेंगे,

वक़्त फिर पलटेगा!

Caregivers

Clutching my mobile

like a prayer book,

he is sick and

we are on the hook.

उनका आपस में तो मसला कुछ भी नहीं था

उनका आपस में तो मसला कुछ भी नहीं था,

कभी जमाना तो कभी घर से ताना आ गया,


देख लिए थे चलने से पहले ख़ाब इतने हसीन,

चले जो तो हक़ीक़तों से अफसाना टकरा गया,

लडकियों की चाहत भी अजीब होती है

लडकियों की चाहत भी अजीब होती है,

या तो चाहती ही नहीं है,

खेल देती हैं दाव तो फिर सोचती नहीं हैं,


झोंक देती हैं अपने आप को हर आग में,

मोम की गुड़ियाँ, 

और लोहा बन कर निकलती हैं,


लोहा जिसे मुश्किलें काट नहीं सकती,

शक्ति जो उठा ले, तो फिर हथियार नहीं रखती,


अगर पास होता एक वर के,

किस की राहें आसान करनी हैं,

कोई होते कुंडल, कवच मेरे पास करन की तरह,

दे के दान मांग लेता तुम्हारे लिए मुक्ति,


पर अभी तो खड़ा हूँ,

बहनो, माताओ, बेटियो तुम्हारे साथ

जहाँ तक भी चल सकूं|

I just reach when my people need me

 I don't know what religion is,

I don't know what leadership is,

I don't know what affection is,

I don't know what relationship is,

I just reach when my people need me.

हश्र

तुम्हें खबर नहीं है ऐ इंसानो,

किस अँधेरे की तरफ बड़े जा रहे हैं हम,

हश्र यूं लगता है जल्दी आएगा ,

अपने कर्मो के फल पाने वाले है हम,


चंद लोगों की मुट्ठी में 

सिमट रहा है दौलत का समन्दर,

और समंदर भर लोग,

घुट घुट के जी रहे हैं अंदर ही अंदर,


दूभर हो रहा है दिन-ब-दिन 

रहने के लिए एक छत्त जोड़ पाना,

और हिल गयी है बुनियाद जीवन की,

पुराने का जाना नए का आना,

 

मैं नक्शा देखता हूँ जब भी,

तन्हाईओं का तस्सवुर नज़र आता है उस में,

बस अपनी जियो और खत्म करो

यही मंज़र नज़र आता है हर शख़्स की आँखों में,


हमको कोई कुदरती आफत या 

कोई इस ग्रह के बाहर की ताकत नहीं मारेगी,

ये नसल इंसानो की देखना

चंद लोगों की हविस के आगे हारेगी,


धरती के आखिरी इंसानों के नाम 

अपने रहते हुए ये खत छोड़े जा रहा हूँ,

मैंने देख लिया था विनाश आते,

पर कुछ कर न सका हाथ जोड़े जा रहा हूँ!

She felt like a poem in rhyme

Dressed in a monochrome,

She splashed like sunshine,

Today after so many days,

She felt like a poem in rhyme.


The girl I fell in love with,

The girl I want to live with,

Pouring life gently into my cup

From her tender moonlit eyes,


Rising like a daisy in the morning,

Settling like stars in the night,

She, when I see her pass by, makes

My heart ache in lover’s delight.

Entwined

A gentle breeze

caressed both a pebble and a leaf

only one swayed.


A violent gust

buffeted both a pebble and a leaf

only one shuddered.

बस यही है ज़िंदगी और क्या कहूँ

 बीवियों की कट जाती है इंतजारी में,

आदमियों की रोजगार की मारा मारी में,

और बच्चों की इसी तैयारी में,

बस यही है ज़िंदगी और क्या कहूँ।

शहर अच्छा नहीं लगता जाओ गाँव लोट जाओ

शहर अच्छा नहीं लगता जाओ गाँव लोट जाओ,

बेवजह नासमझ लोगों को रस्ते से न भटकाओ,


सो मुश्किलें है यहाँ तो हज़ार मुसीबतें वहाँ हैं,

तोलना ही है तो दोनों को साथ रख के बताओ,


जिसने तुम्हें काम दिया, नाम दिया, मुकाम दिया,

उसी को कहते हो बुरा, कुछ तो यारो शर्म खाओ,


सबको सुनाते फिरते हो अफ़साने खेत खलिहानों के,

है अगर हिम्मत तो ज़िंदगानी वही जी कर दिखाओ,


ये भी इंसानों की जगह वो भी इंसानो की है जगह,

और बड़े मसाइल है पहले ही तुम और न बढ़ाओ!

कर लो काम वक़्त के हिसाब से जैसे वो बना है

बेवक़्त करोगे तो खुद को लगेगा ये क्या गुनाह है,

कर लो काम वक़्त के हिसाब से जैसे वो बना है,


जवानी में देख लो जितनी भी दुनिया देखनी है,

पीरी में तो न दिखाई देता है ना जाता चला है,


छोटे दाओ तो बेख़ौफ़ हो के खेल लिया करो,

आखिर तो सब की तय और यकीनन फ़ना है,


जो भी मुश्किलें हैं शहर की थोड़ा सहन करो,

तुम्ही ने बदला है इसे, तुम्ही से ये ऐसा बना है,


दिल है जो नहीं हो सकता उसी तरफ भागता है,

चाहे तख्ती पे लिखा हुआ है अंदर आना मना है!

उसकी मर्ज़ी के सांचे में डाल के उसके हाथों में थमा दो

 मुझे मिटा दो, फिर से बना दो, उसे अच्छा लगे, वैसे सजा दो,

अगर एक यही आखिरी रास्ता है, देख लो, ये भी आजमा दो,


जो गुज़र रही है उसके बिना, हर घडी, हर रहगुज़र से है गिला,

मुझे तोड़कर ओ कूज़ा-गर, चाक पे एक बार फिर से चढ़ा दो,

 

क्या मजा बिना चाह जीने का, ग़म भुलाने के लिए पीने का,

हो जिसकी भी वो  मुंतजिर, मुझे बस वही लिबास पहना दो, 


वही मेरी मंजिल वही मेरा मुकाम है वही सुबह वही शाम है,

जो भी हो सके जो भी बन सके मुझे उसके दिल में बसा दो, 


बस रूह रखना कायम मेरी, इस में है मेरी चाहत छुपी,

उसकी मर्ज़ी के सांचे में डाल के उसके हाथों में थमा दो!

तुझे चाह तो लिया मगर, तुझे पाने की कोई राह न मिली

तुझे चाह तो लिया मगर, तुझे पाने की कोई राह न मिली,

फूल कोई खिलता ही नहीं, ये कैसी मुझको ज़मीन मिली,


कहूँ इसे किस्मत का खेल, बदनसीबी, ये मेरी कोई कमी,

भटक रहे हैं अब भी तलाशे यार में शहर शहर गली गली,


जो साथ थे वो दूर हो गए, जो जानते थे सब वो भूल गए,

अपना साया अब तो बस साथ है, नींद भी गयी छोड़ चली,


कोई रहनुमा मुझे अब मिले, कोई रहबर मुझे राह दिखाए,

बुहत बीत चुकी है ज़िन्दगी और अब शाम होने को है चली,


कहीं अफ़सोस ही मेरी ज़िन्दगी का सरमाया ना बन जाए,

के चले तो आखिरी सांस तक पर कोई मंजिल न मिली! 

ਸੁਫਨਾ

ਬੁਹਤ ਸਾਲਾਂ ਤੀਕ 

ਮੇਰੇ ਖ਼ਾਬਾਂ ਵਿੱਚ

ਆਉਂਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ, 

ਇੱਕ ਵਕ਼ਤ ਦਾ ਵਰਤਿਆ 

ਤੇ ਹੰਢਾਇਆ ਹੋਇਆ ਆਦਮੀ,


ਚਿੱਟਾ ਚੋਲਾ ਪਾਇਆ ਹੋਇਆ,

ਨੂਰ ਨਾਲ ਭਰਿਆ 

ਸ਼ਾਂਤ ਜਿਹਾ ਚੇਹਰਾ,


ਚਾਰੇ ਪਾਸੇ ਓਹਦੇ 

ਕਿਤਾਬਾਂ ਹੀ ਕਿਤਾਬਾਂ,

ਤੇ ਇਕੱਲਾ ਕਮਰੇ ਚ ਬੈਠਾ

ਕੁਛ ਪੜੀ ਜਾ ਰਿਹਾ,

ਤੇ ਵਿੱਚ ਵਿੱਚ ਦੀ ਕੁੱਝ ਕਾਗਜ਼ ਤੇ 

ਦਰਜ਼ ਵੀ ਕਰੀ ਜਾ ਰਿਹਾ ਸੀ,


ਮੈਨੂੰ ਸ਼ਾਇਦ ਕਦੀ 

ਸਮਝ ਹੀ ਨਹੀਂ ਲੱਗੀ,

ਇਹ ਕੀ ਹੈ ਸੁਫਨਾ 

ਤੇ ਮੈਨੂੰ ਕਿਓਂ ਆ ਰਿਹਾ ਸੀ,


ਤੇ ਅੱਜ ਅਚਾਨਕ ਹੀ ਮੈਨੂੰ 

ਇੰਞ ਲੱਗ ਰਿਹਾ ਹੈ,

ਜਿਵੇਂ ਉਹ ਟੈਗੋਰ ਸੀ,

ਤੇ ਓਹ ਮੈਨੂੰ ਕਹਿ ਰਹੇ ਸੀ 

ਪੁੱਤਰਾ ਏਧਰ ਆ ਜਾ, 

ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਬਹਿ ਜਾ 

ਤੇਰੇ ਵੀ ਰਸਤਾ ਇਹੀਓ ਹੈ! 

ਟੀਵੀ

ਬੜਾ ਮੈਨੂੰ ਲੱਗਣ ਲੱਗ ਪਿਆ ਸੀ,

ਜਿਵੇਂ ਮੇਰੀ ਮੱਤ ਕੰਮ ਕਰਨੋਂ ਹੱਟ ਗਈ,

ਪਰ ਫਿਰ ਮੈਂ ਸੋਚਿਆ ਮੇਰੀ ਉਮਰ 

ਤਾਂ ਕੋਈ ਹਾਲੇ ਜਿਆਦਾ ਨੀ ਹੋਈ,


ਮੈਂ ਆਪਣੀ ਬਹਿਣੀ ਉੱਠਣੀ

ਚ ਤਬਦੀਲੀ ਕਰਕੇ ਦੇਖੀ,

ਮੈਂ ਮੂਰਖਾਂ ਦਾ ਖਹਿੜਾ ਛੱਡ ਦਿੱਤਾ,

ਮੈਂ ਸੋਂਹ ਖਾ ਲਈ, ਮੈਂ ਕਿਹਾ 

ਕੱਲ ਤੋਂ ਇਹਨਾਂ ਕੋਲ ਬਹਿਣਾ ਹੀ ਨਹੀਂ,


ਇਹ ਅਕਲ ਦੇ ਅੰਨਿਆਂ ਕੋਲ 

ਜਿਹੜੇ ਗੰਦ ਸਵਾਹ ਖਰੀਦਣ 

ਵੇਚਣ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਕਰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ, 

ਜਿਹੜੇ ਔਰਤਾਂ ਦੇ ਜਿਸਮਾਂ ਤੇ 

ਬਦਤਰ ਨਗਮੇ ਘੜਦੇ ਰਹਿੰਦੇ,


ਮੈਂ ਬਹਿਣਾ ਉੱਠਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ

ਦਾਨਿਸ਼ਮੰਦਾਂ ਕੋਲ, ਜਿਹੜੇ ਖੋਲ ਦੇ 

ਨੇ ਭੇਤ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੇ, ਤੇ ਤਰੋ ਦੇ 

ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਨਵੀਆਂ ਮੰਜਿਲਾਂ ਦੇ ਸਫਰ ਤੇ,   


ਤੇ ਮੈਂ ਕੋਲ ਕਿਤਾਬਾਂ ਰੱਖ ਲਈਆਂ ਨੇ,

ਜੰਮੀ ਜਿਹੜੀ ਮੈਲ ਮੇਰੀ ਸੋਚ ਤੇ 

ਖੁਰਚ ਖੁਰਚ ਕੇ ਓਹਨੂੰ ਲਾਉਣ ਲਈ,


ਤੇ ਹੁਣ ਮੈਨੂੰ ਠੀਕ ਲੱਗਣ ਲੱਗ ਪਿਆ ਹੈ,

ਇੰਞ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ਮੁੜ ਆਈ ਹੈ 

ਸਮੁੰਦਰ ਜਿਹੀ ਸੋਚ ਚ ਗਹਿਰੀ ਡੁੰਗਾਈ,

ਚੱਲ ਪਏ ਨੇ ਕਲ ਪੁਰਜੇ ਫਿਰ ਤੋਂ

ਚੱਕੀ ਫੇਰ ਪੀਹਣ ਲੱਗ ਪਈ! 

ਇਲਾਜ਼

ਉਹ ਬੜਾ ਕੁਲਝਿਆ ਕੁਲਝਿਆ ਜਾ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ,

ਹਰ ਵਕ਼ਤ ਚੇਹਰੇ ਤੇ ਪਰੇਸ਼ਾਨੀ ਤੇ ਮਾਯੂਸੀ,

ਘਬਰਾਇਆ ਤੇ ਡਰਿਆ ਜਾ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ,

ਐਥੇ ਲੁੱਟ ਮੱਚ ਗਈ ਓਥੇ ਲੜਾਈ ਹੋ ਗਈ,


ਹਾਏ! ਦੁਨੀਆਂ ਖਤਮ ਹੋ ਜਾਣੀ, 

ਹਾਏ!ਮੇਰਾ ਜੀ ਕੱਚਾ ਕੱਚਾ ਹੁੰਦਾ,

ਮੇਰਾ ਇਲਾਜ਼ ਕਰਾਓ, ਮੈਨੂੰ ਡਾਕਟਰ ਕੋਲ 

ਲੈ ਜੋ, ਕੀਤੇ ਮੈਨੂੰ ਦਾਖ਼ਲ ਕਰਾ ਦੋ,


ਬੁਹਤ ਦਿਨ ਦੇਖਿਆ ਓਹਦੀ ਘਰ ਵਾਲੀ ਨੇ,

ਅੱਕ ਕੇ ਫਿਰ ਓਹਨੇ ਸੁਬਹ ਦੀ ਅਖਬਾਰ ਬੰਦ ਕਰਤੀ, 

ਟੀਵੀ ਚੋਂ ਸੈੱਲ ਕੱਢ ਕੇ ਸਿੱਟ ਦਿੱਤੇ,


ਬੜਾ ਕਲਪਿਆ, ਬੜਾ ਖਹਿਬੜਯਾ ਓਹਦੇ ਨਾਲ,

ਹੱਥ ਵੀ ਚੱਕਣ ਤੇ ਆਵੇ, ਪੁੱਠਾ ਸਿੱਧਾ ਵੀ ਬੋਲੇ,


ਪਰ ਦੋ ਕੁ ਹਫਤਿਆਂ ਚ ਓਹਦਾ ਨਸ਼ਾ ਟੁੱਟ ਗਿਆ,

ਲੈ ਕਹਿੰਦਾ - ਮੈਂ ਤਾਂ ਨੀ ਜਾਂਦਾ ਤੀਹ ਸਾਲ ਕੀਤੇ ਹੋਰ,

ਹੁਣ ਮੈਂ ਜਵਾਂ ਨੌਂ ਭਰ ਨੌਂ ਹੋ ਗਿਆ ਹਾਂ! 

शादी

बड़ा जोर लगाते 

घर वाले उसके, 

घर बसाओ शादी करो,


और वो कहता था 

मेरी हो चुकी है,


बिजली की तारों से,

अविष्कारों से,


मैंने दुनिया, 

बना ली है अपनी,

अपने सपनों में 

अपने ख्यालों में!

पहले खुद के पास आ जाओ

पहले खुद के पास आ जाओ,

फिर लोग भी तुम्हारे पास आ जाएँगे! 


काश! मुझे ये सब कुछ उस वक़्त पता होता

मैं तुम्हारी सूरत से वाक़िफ़ था,

क्योंकि उन पाबंदियों में

सिर्फ उतना ही मुमकिन था,


मैं तुम्हारी सीरत भी देख सकता था 

उसका कुछ हिस्सा जग जाहिर था,


पर इतना कभी मुमकिन न हो सका 

तुम्हारे ख्यालों, सपनों को देख सकूँ 

तुम्हारे अंदर क्या चलता है उसको पढ़ सकूं,


ख्यालों की जिस रहगुज़र पे आकर 

लोग मिल जाते हैं, जहाँ सूरत से ज्यादा 

सीरत और ख्याल अहम हो जाते हैं, 


शायद ये भी रस्ता होता है किसे का 

बनने, किसे को अपना बनाने का,


काश! मुझे ये सब कुछ उस वक़्त पता होता,

नामुमकिन सोच के यूँ  ही मायूस न होता!

लफ़्ज़ों से राब्ता

घर से बाहर भी कुछ अच्छा नहीं लगता था,

घर पे भी माहौल ठीक नहीं  रहता था,

कमरे में अपने आप को सब आवाज़ों से 

बचने के लिए बंद कर लेता था,


और अचानक एक दिन धुल सनी

किताबों में लफ़्ज़ों से मेरा राब्ता हुआ,

तब से हैं हम दोनों एक दूजे के साथी! 

तालीम

मैं नहीं मानता, 

किसी भी चीज़ को, 

किसी भी ख्याल को,


बिना सोचे, बिना समझे,

बिना जाने, बिना परखे,


और हाँ, 

ये भी हो सकता है

आज जो सही लगे

उसे कल गलत कहूँ, 

आज जो गलत लगे

उसे कल सही कहूँ, 


मैं आपसे सहमत नहीं हूँ

जैसे है वैसे ही मान लो,


मैं बहस नहीं करता हूँ, 

बस आप मुझे, 

अपने खून पसीने की कमाई से

तालीम हासिल करने 

के लिए भेजते हो ना, 

उसी का हक़ अदा करता हूँ,


अगर आप को सही नहीं लगता,

आप भी दिन भर थोड़ा और 

आराम किया करो,

मैं भी बस्ता अलमारी में रखता हूँ! 

हर किसी की अपने आप से ये लड़ाई है

इतनी आशनाई है फिर भी तन्हाई है,

ये खलिश न जाने कहाँ से आई है,


जो मिला उसका जश्न कम है मनाता,

जो ना मिला उसके लिए दिल सौदाई है,


शायद मैं ही गया हूँ वक्त की तरह,

जो कभी आशिक तो कभी हरजाई है,


या मेरा मिजाज़ ही ऐसा हो गया है,

अच्छा लगने गया इसे ज़ौक-ए-गुदाई है,


चलो तुम मेरी ज्यादा परवाह न करो,

हर किसी की अपने आप से ये लड़ाई है।

हो दोनों जानिब तो कुछ बात बनती है

हो दोनों जानिब तो कुछ बात बनती है,

नहीं तो चाहत की बस ख़ाक बनती है,


वही चाँद सूरज वही ज़मीनों आसमान,

देखते हैं किस तरफ़ दिन-रात बनती है,


ना चलो अगर हर बार ख़ुशी ही चाहिए ,

खेलोगे तो हार जीत दोनों बात बनती है,


फ़क़त हुनर से मुमकिन बस थोड़ा कुछ,

साथ जिगर रखो तब बड़ी बात बनती है,


अच्छा बुरा वक़्त दोनों में ही सबक  कोई,

देखना आ जाए मुकम्मल हयात बनती है!

हिफाज़त

जो सब कुछ भी 

हमारे पास है,

जितना मेरा है

उतना तुम्हारा भी है,


माना मैंने चाहत रखी,

मेहनत की है,

पर तुमने मुझे 

उन्हें साकार करने 

की मोहलत दी है,


तुमने मेरे सपनोँ की 

हिफाज़त की है!

नौकरी

दुनिया से क्यों

करना गिला, के वो

हमको ना जान पाए हैं,

सोचें तो हम ये

क्या अपनी क्षमताओं

को पहचान पाए हैं?


उसको यकीन था

अपने पे, उसने घर

छोड़ दांव लगाया,

फ़ाके झेले, तन्हाइयां

देखी, तल्ख़ियां सही,

नींद छोड़ी, दर्द सहा,

कई बार गिरा,

कितनी बार टूटा,

फिर भी उम्मीद न छोड़ी,


और फिर हम ही

गए थे, महफूज रहने के

लिए उसकी छत के नीचे,

जो जब चाहे छोड़ दें,

ना कोई पूछे, ना कोई

जबरन वापिस खींचे,


शायद हम ही नहीं

सोच रहें है, यहाँ

से अब आगे कहां

और कैसे जाना है,

उसके सिर दोष मढ़ना

शायद आलसमंदी

या बहाना है!

दर्शन

मैं ठीक हूँ, 

जैसे भी हूँ,


जानता हूँ 

शिलाओं 

को मौसम 

नहीं छूता,


मैं आपका 

दर्शन, अपना 

नहीं सकता!

प्यार

जिस ने उसकी 

ज़िन्दगी 

दुष्कर की है,


उसी के बिना 

अब वो, रह 

नहीं सकती!  

खिलौने

नहीं छोड़ती है

खिलौने, सारा दिन 

लाख समझाने पर,


सो जाती है, तो 

अपने आप ही, 

छूट जाते हैं!

मैं साकी हूँ

मैं साकी हूँ, प्याले भरता हूँ, भूख लगी है? कहीं और जाओ!

इलाज

खुरदुरी दीवारों 

को वो रेगमाल 

से स्पॉट करके

पुताई करते रहता,


सुबह शाम फूँकता 

रहता था बीड़ी, 

बीच में कभी कभी

गुनगुना लेता,


मैं खड़ा वहाँ,

धुएँ में खांसते हुए

देखता रहता,


शायद अपने  

इलाज के लिए!

2025

ये वक़्त ने इस बरस 

कैसी सजा दी है,

शुरू हुआ तो, 

सर से छत छीन ली,

खत्म होने को है, 

पाऊँ के नीचे से अब

ज़मीन खींच ली है,


काश वक़्त का 

कोई पता होता,

मैं जाता और 

इसको धर लेता,

मार देता इसको, 

या फिर अपने 

आप को लाचार पा,

इस बे-हिस के घर 

के सामने, आत्मदाह 

कर लेता! 


-------

छत छीन ली, 

ज़मीन खींच ली, 

वक़्त ने इस साल -

मैं बस देखता रहा, 

करता भी क्या?

पैरहन बदलते रहो, तहज़ीब मत बदलना

पैरहन बदलते रहो, तहज़ीब मत बदलना,

ज़ुबान कोई भी बोलो, तमीज़ मत बदलना,


रुक जाना तो मौत है, बिलकुल नहीं कहता,

विरासत में जो मिला है बस साथ लेके चलना,


घर से निकल के, जाओ दुनिया देख आओ,

घर छोड़ के परदेस जाने की ज़िद्द मत करना,


सब से मिलो और करो दोस्ती ये अच्छी बात है,

बस किसी के लिए हमारी चाह कम मत करना,

 

लो मैंने अपने सपने तुम्हारे सपनो पे वार दिए,

तुम कुछ नहीं बस कभी ये तन्क़ीद मत करना!

जीत तुमने दी है

 टीस उसने दी थी,

ठीक तुमने की है,

धूप उसने दी थी,

छांव तुमने की है,

हार गया था उसके 

आगे, जीत तुमने दी है!


देता रहा सदाएं

लौट के ना आई,

मिली उस वक़्त

सिर्फ सिर्फ तन्हाई,

तुमने हर चाह पे

चाह लौटाई,

बन के चली

साथ मेरी परछाई,

जो ढूंढता था

वो ज़िंदगी दी है,

टीस उसने दी थी,

ठीक तुमने की है!


अनुराग उसने जगाया,

प्रेम करना तुमने सिखाया,

मैने शुरू करना सीखा

पर निभा के तुमने दिखाया,

उसने टूट के जीना,

तुमने बनके के जीना बताया,

डालियां तो वो दे गयी

सींच के बहार तुमने की हैं,

टीस उसने दी थी,

ठीक तुमने की है!

छोड़ दिया ख्याल ज़िंदगी सपनों सी कभी हो जाएगी

छोड़ दिया ख्याल ज़िंदगी सपनों सी कभी हो जाएगी,

जान गया हूं राज आज जो गीत कल भी यही गाएगी,


दे दी है मोहिनी तस्वीर एक वक़्त ने रंग उसमें भरने हैं,

भर लूं अपनी मर्जी से क्या मालूम धूल कब हो जाएगी,


दिन रात जैसे चाह जिम्मेदारी साथ साथ चल सकते हैं,

जितना खुश रहेंगे ज़िंदगी उतने और दिन देती जाएगी,


छुट गया जो गीत ग़ज़ल का हाथ आज अपने हाथ से,

फिर नहीं मिलेंगे पत्ते हवा इन्हें दूर उड़ा के ले जाएगी!

मैंने मुश्किलों में ज़िन्दगी बनाई है

मुझे ज़िन्दगी में मुश्किलें नहीं आयी,

मैंने मुश्किलों में ज़िन्दगी बनाई है,


मेरी हसीं के पीछे पीछे मत आओ,

इसके पीछे ग़मों की गहरी खाई है,


कितना ठुकराया गया हूँ क्या कहूँ,

उसी ने मोहब्बत करनी सिखाई है,


तन्हाइओं का दर्द अच्छे से जानता हूँ,

इसी लिए अच्छी लगती आशनाई है,


बेरुखी क्या बताऊँ कहाँ ले जाती है,

बात सुन लेना किसी की ये भी भलाई है,


सोचा तो नहीं था ये सब बात करूँ,

कुछ बात हुई बातें निकल आई हैं!

तुम ही मेरे लिए ख़ास हो

तुम जो मेरे पास हो,

तुम ही मेरे लिए ख़ास हो!


भूली बिसरी बातें

यूं ही कभी कभी 

याद आ जाती हैं,

होती कुछ नहीं

बस ख्यालों की 

आवारागर्दी है,

बेवजह न उदास हो,

तुम जो मेरे पास हो,

तुम्हीं मेरे लिए ख़ास हो!


कुछ नहीं था जब पास मेरे 

तब तुमने मेरा साथ दिया,

सीधी सी बातों वाले पे 

इतना तुमने विश्वास किया,

सादे से कपड़ों में भी देख 

कहा अच्छे लगते हो पिया,

और चली आई सब छोड़ 

सीता चल पड़ी हों जैसे 

राम जी के साथ वनवास को,

तुम जो मेरे पास हो,

तुम्हीं मेरे लिए ख़ास हो! 


फीकी सी मेरी ज़िन्दगी में 

आ के ख़ुशी का रंग भर दिया,

बड़े मकानों में रहा था

तुमने मुझको आ के घर दिया,

जितना मैंने सोचा था,

तुमने उससे बढ़कर किया,

क्यों खोल के पड़ना 

मेरे बासी इतिहास को,

तुम जो मेरे पास हो,

तुम ही मेरे लिए ख़ास हो!


सच वो भी है जो लोग कहते हैं,

सच वो भी है जो मैं कहता हूँ,

पर ऐसे ही तो होती है ज़िन्दगी,

लो बात में तुम्हें ये कहता हूँ,

जो होता है वक़्त का मंजर,

उसी में सपने सजा लेता हूँ,

जो लगता है अच्छा, जुट 

जाता हूँ, या ख़ाब बना लेता हूँ,

क्यों इतना आदर्श मान 

के चलना, इस सपनों की 

उम्मीदों की ख़ाक को,

तुम जो मेरे पास हो,

तुम ही मेरे लिए ख़ास हो!

अपना आप छोटा लगने लग गया

 तुम्हारे लिए इतने ख़ाब सजा लिए, 

अपना आप छोटा लगने लग गया,

तुम तो शायद हाँ कर भी देती, 

मैं अपने आप को खारिज कर गया,


तुम्हारे पास तो सब कुछ ही था, 

सीरत भी सूरत भी रुतबा भी दौलत भी,

मैंने अभी कमाना शुरू किया था, 

जेब खाली देख के अपनी डर गया,


क्या सोच के तुम्हारे पास मैं आता, 

किस उम्मीद पे हाथ आगे बढ़ाता,

मैं जानता था तुम हकीकत में जीती 

हो, अफसाना मेरा वहीं मर गया,


धरती अम्बर का मेल कहाँ होता है, 

बस क्षितिज पे खेल सा होता है,

दो सीढ़ी जो चढ़ा था चाह की, 

सोच के फिर वो भी नीचे उतर गया!


चलो जो हुआ सो हुआ, ज़िन्दगी 

को कोई क्यों खेलें समझ के जुआ,

कुछ मुझसे सही न हो पता, तुम 

इलज़ाम देती के मैं धोखा कर गया! 

Happy Friday

 ओ weekend का इंतज़ार करने वाले,

तुम तब भी कोई ख़ुशी नहीं हो पाने वाले,


ख़ुशी तो अंतर में निरंतर बहता दरिया है,

दो फिल्में देख ग़म तुम्हारे नहीं जाने वाले,


Saturday को पांच दिन की थकान उतरेगी,

Sunday को Monday के सपने आने वाले,


मकसद से मतलब की जगह पे काम करो,

जिस्म तो चाहे थके वहाँ पर खून ना उबाले,


वाक़िफ़ हूँ अक्सर नहीं हो पाता मुमकिन,

बन जाओ जुगनू रात को जगमगाने वाले!

ये कैसी जगह आ गए हैं हम

छोड़ के दूर निकल जाएँ कहीं,

या फिर डूब के मर जाएँ कहीं,


ये कैसी जगह आ गए हैं हम,

किसी को किसी की फ़िक्र नहीं,


जितना मर्ज़ी कर लो थोड़ा है,

काम पूरा यहाँ होता ही नहीं,


इनका क्या पता कब मुँह फेरें,

शिकवे बीवी के भी हो गए कई,


बच्ची जहाँ छोड़ी वहीँ खड़ी है,

abc तक अभी लिख पाती नहीं,


इश्क में पागल हुआ था मजनू,

रोटी के लिए हम न हो जाए कहीं,


मरने से अब डर तो नहीं लगता,

उसके लिए भी पर मोहलत नहीं,


घर टूटे या जिस्म से जान छूटे,

इससे पहले ढूंढे और काम कहीं,  


ये कैसी जगह आ गए हैं हम,

किसी को किसी की फ़िक्र नही!

किसी वजह से ही उसने मुझे बनाया होगा

कोई करिश्मा करना मेरे हिस्से आया होगा,

किसी वजह से ही उसने मुझे बनाया होगा,


बड़ा काम आया, अधूरा रहा इश्क जो मेरा,

किसी और ने मुझे इतना ना सिखाया होगा,


अपने आगे जो देख के उनको सरूर आता है,

इन्होंने ने भी तो किसी तरह रस्ता बनाया होगा,


मेरे दिल में तो एक सूरज कब से रोशन है,

कभी ना कभी तो दुनिया को भी नुमायाँ होगा,


उमर भर की मेहनत मेरी यकीनन रंग लाएगी,

दिन रात बरसों एक किया यूं न जाया होगा!

खुश रहना जो अब सीख लिया है

 खुश रहना जो अब सीख लिया है,

उसने जो कुछ दिया सब ठीक दिया है,


अब मैं कोई बाजी हार नहीं सकता,

दिल तेरा जीतना था जीत लिया है,


बाजार से मैं बिल्कुल खफा नहीं हूं,

बस इसे देख थोड़ा नजदीक से लिया है,


शाहीं को बुलबुल बन देखूं शाखों से,

उसकी परवाजों पे लिख गीत दिया है,


अच्छा बुरा दोनों वक्त बनाते हैं इंसान को,

बुलंदियों को तह से जो तहक़ीक़ किया है!

ये तो अभी से बैठ के रोने लगा है

अभी तो दो गाम मोहब्बत के चला है,

अभी तो दो ताने दुनिया के पड़े हैं,

ये तो अभी से बैठ के रोने लगा है,

बातें करता है फरहाद कैस की,

हशर तक रहेगा मेरे साथ ही, 

होने से पहले ही एतबार खोने लगा है, 


चाँद सितारे क्या तोड़ के लाएगा,

ये तो अगले मोड़ तक न जा पाएगा,

मुसीबत पड़ी तो छोड़ के भाग जाएगा,

छूटे इससे मेरा दामन या अल्लाह,

ये तो मेरे ऊपर बोझ बन जाएगा,

हाय! मेरा तो जी कच्चा होने लगा है,

   

रातों को कहता है मैं सोता नहीं हूँ,

रहता कहीं हूँ पर मैं होता कहीं हूँ,

हीर को जो ना मिला मैं रांझा वही हूँ,

जब भी मिलता है हवाईआं ही कहता है, 

इसे साथी की नहीं डाक्टर की जरूरत है,

मुझे तो ये पागल मालूम होना लगा है, 

  

ये क्या बनाया हैं तूने ओ बनाने वाले,

ये कहाँ तार जोड़ दिया है ओ मिलाने वाले,

तुम दोनों पे लाहनत तुम दोनों पे नाले,

ये गली मोहल्ला अब छोड़ना पड़ेगा,

और फ़ोन का नंबर भी बदलना पड़ेगा,

जल्दी करूँ शाम हुई अँधेरा होना लगा है! 

ऐ जान-ए-जान तुम शाद आबाद रहा करो

ऐ जान-ए-जान तुम

शाद आबाद रहा करो,

तुम जो थक के बैठ गयी 

मुझे भी रुकना पड़ जाएगा,


अभी सफर बुहत पड़ा है

अभी मंज़िल बुहत दूर है,

जो कोई दुश्वारी पड़ गई,

तो इस उजले उजले मंजर से

लौट के जाना पड़ जाएगा,


कश्ती दो चप्पू से चलती है,

तुमसे जो अपना छूट गया तो,

सफीना हमारा डूब जाएगा,

आशिआना हमारा बिखर जाएगा,


तेरी मोहब्बत तेरी चाह है,

जो रोज़ नए सपना सजा रहा हूँ,

तुम जो साथ ना रही तो

दम मेरा भी निकल जाएगा,

 

ऐ जान-ए-जान तुम

शाद आबाद रहा करो!

एक आखिरी दुआ, एक आखरी सलाम है

एक आखिरी दुआ, एक आखरी सलाम है,

मश्कूर हूँ, कुछ तो आपने करने दिया काम है,


खुद का खुद पे ही यकीन कम हो गया था,

गुमनामी के अंधेरों में कहीं गुम हो गया था,

आपके निज़ाम में कुछ तो हुआ मेरा नाम है,

एक आखिरी दुआ, एक आखरी सलाम है,


मिला एतबार और हौंसला मैं चलता रहा,

पता न रहा, दिन कब आए, कब ढलता रहा,

होता है, ओहदों से आगे जब रहे एहतराम है,  

एक आखिरी दुआ, एक आखरी सलाम है,


रस्ता मिल गया है तो मुकाम भी मिल जाएगा,

गुज़र रहा बुरा तो क्या नवरोज़ जल्द आएगा,

पर हवाओं ने लिख भेजा ख़िज़ाँ का पैगाम है,

एक आखिरी दुआ, एक आखरी सलाम है!  

पर तुम्ही क्यों होते हो, जहाँ भी कुछ ऐसा होता है

माना के, हर आदमी बुरा या गुनहगार नहीं होता है,

पर तुम्ही क्यों होते हो, जहाँ भी कुछ ऐसा होता है,


कोई गलती या कमी तो, जरूर है कहीं निसाबो में, 

जान देकर, जान लेने को, जो तैयार कोई होता है,


क्या फरक है सबसे, एक बार जरा सोच तो लो,

बिना बात के दुनिया में कोई दुश्मन नहीं होता है,


यहाँ से तो जाओगे ही, आगे भी कुछ नहीं पाओगे,

मसले और बढ़ते हैं, मरने मारने से कुछ नहीं होता है,


साथ चलो दुनिया के अपना इक़बाल बुलंद करो,

तहज़ीब तालीम वाले का हर जगह मान होता है!

ये तकसीम कर ली है जीने के लिए

जिस्म को ज़िम्मेदारियों के हवाले,

रूह को दे दिया है खाबों के लिए,

देखें काम करती है के नहीं तदबीर,

ये तकसीम कर ली है जीने के लिए!

क्यों दुनिया के बातों में आते हो, तेरी मोहब्बत है मेरा सरमाया

क्यों दुनिया के बातों में आते हो, तेरी मोहब्बत है मेरा सरमाया, 

चाह के भी भुला नहीं सकता, खुद को मिटा के तूने मुझे है बनाया, 


ज़माने से मात खा के, वक़्त के हाथों ज़ख्म खा लोटा हूँ जब भी, 

तूने ही मेरे ज़खमों पे मरहम लगाया, रात रात भर मुझे सहलाया, 


तेरे खाब भी थे, मेरे खाब भी थे, शादाब हो सकते थे शायद दोनों, 

अपने आप को मेरे पीछे रख के, तूने आगे मुझे हर दम है बढ़ाया, 


सच कहता हूँ तेरी चाहत मेरी बंदगी, तेरी फ़िक्र है मेरी इबादत, 

क्यों बे-वक़्त हो जाती हैं मेरी नमाज़ें, लो आज तुमको ये बताया!

हाल-ए-दिल था जो, कभी तुमको सुनाया ही नहीं

शायद मेरे ही मेरे थे तुम, हक़ मैंने जताया ही नहीं,

हाल-ए-दिल था जो, कभी तुमको सुनाया ही नहीं,


उठा के हाथ फ़रियाद तो करता, बन के नमाज़ी,

सजदे में लेकिन मैंने, सर अपना झुकाया ही नहीं,


ये अधूरा सा जो रह गया, अब और भी है सताता,

जो होता सो होता, कदम आगे क्यों बढ़ाया ही नहीं,


जो मिलते तो मेरी चाह हो जाती तुमको नुमाया,

ना जाने क्यों इस असबाब को आज़माया ही नहीं,


तुम्हारी ना से जान जाती, दुनिया से छूट जाते हम,

ग़मे-दिल का बोझ लेकिन, अब जाता उठाया नहीं!

फिर ना कोई तम्मना अधूरी रहती

भूख ना लगती,

नींद की जरूरत ना होती,

बदन की इतनी हिफाज़त ना करती पड़ती,

फिर ना कोई तम्मना अधूरी रहती,

फिर ना कोई मक़ाम नामुमकिन होता!

नहीं कर सकते तो कह दीजिए

नहीं करना तो मत कीजिए, 

नहीं कर सकते तो कह दीजिए, 

पर बेवजह बुरा भला कह के, 

दिल के किसी को दुख न दीजिए!


एक उम्मीद पे तो हम सब ज़िंदा है,

मिलेगा दाना उड़ता डाल से परिंदा है,

जो नहीं दे सकते दो दाने भिक्षु को,

दुत्त्कार के दिल उसका तोड़ न दीजिए!


अपनी अपनी चाह सब को प्यारी है,

बन्दा दिन रात करता मेहनत, तैयारी है,

नहीं बन सकते हो जो कृष्ण से सारथी,

तो कटु वचन कह उत्साह क्षीण न कीजिए! 


अपना करीबी समझा, तभी था वो आया,

सबको तो नहीं जाता अपने मन का बताया,

जो व्यथा उसकी को तुम हर नहीं सकते ,

नश्तर से उसको लहू-लुहान न कीजिए!

शायरान

दर्दन, 

दुखन,

चाहतन,

शायरान,

दौलतन, 


अकेलापन,

खालीपन,

सूनापन,

अधूरापन,

शायरान,

सहूलतम,


लाचारी,

दुश्वारी,

बेकरारी,

शायरान,

निखारतन,


जुनूं,

फ़ुसूँ,

फ़ुज़ूँ,

शायरान,

उच्चतम!

एक छोटा सा गुलशन

दो लड़कियों की है 

मेरे कन्धों पे ज़िम्मेदारी,


एक छोटी सी चिड़िया,

एक फूलों की डाली,

एक छोटा सा गुलशन हमारा,

जिसका मैं हूँ माली,


चिड़िया तो चीं-चीं कर के

जब चाहे बुला लेती

सब काम रुकवा के भी

अपने पास मुझे बिठा लेती

जिसको मालूम है बस 

अभी तो खेल खिलोने

ना मानो उसकी बात तो 

करती है ज़िद्द या लगती रोने,


पर डाली मुझ से 

कुछ भी नहीं कहती,

चुपके चुपके मुझे 

बस देखती ही रहती,

उठूँ देर से या आऊं 

देर से, मेरी राह में 

पलके बिछाए बैठी रहती,


इन दोनों के लिए 

मैं दिन रात हूँ लगाता,

सपने पीछे छूट भी जाएँ 

फिर भी हूँ मुस्काता,

इन दोनों के लिए सब 

खुशियाँ हूँ ले आना चाहता, 

इन दोनों को ज़िन्दगी के 

सब दुखों से बचाना हूँ चाहता,  


चाहे मैं जानता हूँ,

जैसे दिन मैं बिताता हूँ,

अक्सर अब कभी कभी 

मैं तो ऊब सा जाता हूँ,

फिर भी फिरता हूँ 

इन दोनों के लिए 

बन के दर दर का सवाली,


एक छोटी सी चिड़िया,

एक फूलों की डाली,

एक छोटा सा गुलशन हमारा,

जिसका मैं हूँ माली!

ज़िंदगी के अजीब हैं पेच-ओ-खम

ज़िंदगी के अजीब हैं पेच-ओ-खम,

एक तरफ जरूरतें, एक तरफ ख़ाब,

और बीच में दोनों के फस गए हैं हम!


ना जाएँ काम पे तो घर नहीं चलता,

ना बिताए अगर सुखन-ए-शाम तो

या दिल रो रो के सिसकियां है भरता,

कोई बताए जाएँ तो जाएँ किधर हम,

ज़िंदगी के अजीब हैं पेच-ओ-खम!


क्या ही बताऊं अब मैं ये किसी को

कितने काम मैने शुरू करके छोड़े हैं,

कितने जाम खुद मैने हाथ से तोड़े हैं,

कब से कर रहा हूँ अपने पे ये सितम,

ज़िंदगी के अजीब हैं पेच-ओ-खम!


कभी दिल करता है के अब लोट जाएँ,

कभी दिल करता है के कोई दाव लगाएँ,

कभी दिल करता है घर छोड़ निकल जाएँ,

गौतम नानक या बुल्ले शाह बन जाएँ हम,

ज़िंदगी के अजीब हैं पेच-ओ-खम!


गिला है आज वक्त से भी ये हमको,

नहीं वक्त देना था जो इतने सब के लिए,

क्यों इस गरीब को इतने अरमान दे दिए,

देता बस एक ना उससे ज्यादा ना कम,

ज़िंदगी के अजीब हैं पेच-ओ-खम!

Homi तुम कहां हो?

 Homi तुम कहां हो?

दुनिया कहती है 

तुम चले गए,

मैं कहता हूं 

जहां भी है परमाणु

तुम वहां हो,


सूरज चढ़ा उतरा करते हैं,

चांद सितारे कभी जगह

खाली नहीं करते हैं,

तुम अपना करके काम

चले गए वहां हो,

 

तुम कलपक्कम में हो,

तुम नरौरा में हो,

तुम रावतभाटा में हो,

तुम तारापुर में हो,


तुम प्रकाश बन के,

लगता है हो हमारे बीच

इर्द गिर्द यहीं कहीं,

देख रहे हो सब जा 

रहा है ठीक के नहीं,

कभी भी अपनी

रूह को जिस्म में

डाल के, हो सकते

फिर से रूबरू हो,


Homi तुम कहां हो?

सौ सौ और कलाम चाहिए

 करते नहीं तुमको दिन में एक भी,

होना कई बार सलाम चाहिए,

इस नए भारत को एक नहीं,

सौ सौ और कलाम चाहिए,


देश के लिए जो जिए,

देश के लिए ही जो सब करे,

अपना निज्ज सब रख के परे,

अपने कर्तव्य का निर्वहन करे,

हमको ऐसे इंसान चाहिए,

इस नए भारत को एक नहीं,

सौ सौ और कलाम चाहिए,


शकित ही सौंदर्य है,

जिसकी भुजाओं में बल

शमा भी उसी वीर को 

ही शोभनीय है,

कह गए राष्ट्र कवी दिनकर,

जो दे लड़ने के लिए वीरों को 

नए युग के लिए अस्त्र शस्त्र,

ब्रह्मा जी से हमको

ऐसे और वरदान चाहिए,

इस नए भारत को एक नहीं,

सौ सौ और कलाम चाहिए,  


हर युग में ही,

ज़मीन को तो है ही,

अस्मिता को भी खतरा है,

पश्चिम उत्तर दोनों ही 

दुनिया पर हक्क जमाना 

चाहते अपना अपना है,

और जीने के लिए ज़मीन 

और सम्मान एक सामान चाहिए,

इस नए भारत को एक नहीं,

सौ सौ और कलाम चाहिए!

अच्छा बुरा जो भी हो सब कुछ बताना पड़ता है

अच्छा बुरा जो भी हो सब कुछ बताना पड़ता है,

सलीका कुछ सीखना कुछ कुछ बनाना पड़ता है,


निकल पड़ते हैं अपने भी कभी कभी बर्बाद राहों पे,

आँखें दिखा के उनको भी वापिस लाना पड़ता है,


ये कैसी दोस्ती तुम कहो ठीक, वो हो खत्म होने पे,

सख्ती से कभी कभी यारों को भी समझाना पड़ता है,


बिगड़ते ही जा रहो जो दिन-बा-दिन हालात और,

बड़ों के सामने फिर आवाज़ को उठाना पड़ता है,


बोलते तो हैं सभी पर कब, कहाँ, कितना और कैसे

आने में हुनर और फनकारी एक ज़माना लगता है! 

मैं दुनिया से चाह के भी कभी कोई फरेब नहीं कर सकता

मैं दुनिया से चाह के भी कभी कोई फरेब नहीं कर सकता,

पर अच्छा बनने के लिए अपने को तबाह भी नहीं कर सकता,


कर लेता हूँ बाल काले जो वक़्त ने कर दिए हैं कुछ सुफेद,

सबकी नज़र देखती है जो उसे नज़र अंदाज़ नहीं कर सकता,


मैं बेवजह की बहस, नुक्ताचीनी और दलीलों में नहीं पड़ता,

पर हाँ जहाँ हल हो सकता है वहाँ कोशिश जरूर हूँ करता,


ये बात भी अब सीख ली है हर जगह बोलना ठीक नहीं है,

लाख कोई चाहे उक्साए बहकाए मैं अब हामी नहीं भरता, 


मैंने देख लिया अब तो कई बार दुनिया का ये सब खेल,

खुदगर्ज़ हो जहाँ सब, खुदगर्ज़ होने से अब नहीं कतरता,


शायद इसे ही ज़िन्दगी की समझ और दुनियादारी कहते हैं,

हैं और भी राज़ मेरे सब सब किसी को जाहिर नहीं कर सकता! 

चालबाज

तबियत का बड़ा ही है वो नासाज़ आदमी,

बोलता है हस के पर है वो चालबाज आदमी,


क्या बताएं कैसी कैसी बे बुनियाद बातें करता हैं,

मुझे तो लगता है अक्ल का है वो खराब आदमी,


आज कुछ, कल कुछ, सामने कुछ, पीछे कुछ,

ऐसा है जमीर और जेहन का वो बीमार आदमी,


उसके तो घर के अब नहीं करते उसका यकीन,

मैं फसा उसके झांसे में बेबस मोहताज आदमी,


आज भी सपनों में खौफ बन के आ जाता है वो,

राधे राधे करता हुआ शकुनि सा दिमाग आदमी!

ग़ज़ल

दहकते अंगारों पे कभी भी हाथ मत रखना,

उसकी बात पे कभी अपनी बात मत रखना,


नाकाम इश्क़ आखिरी तक देता है दर्द बुरा,

कैस जैसा किसी से तालुकात मत रखना,


बड़े जिगर वाले होते हैं जो चाहें वो पा लें,

न हो अगर तो पलकों पे ख्वाब मत रखना,


बड़ी तरह के लोग मिलेंगे निकलो दुनिया में,

हर किसी पे एक जैसा विश्वास मत रखना,


बिना किए ही कुछ मिल जाए ज़िंदगी में तो,

अक्सर होता है फरेब या तो फिर कोई सपना!

डॉकटर

खुश रहो, खुश रहो,

सदा सदा खुश खुश रहो,


ओ दुख दर्द दूर करने वालो,

जख्मों पे मरहम धरने वालो,

सांसों की डोरी टूटने को हो तो,

साथ किसी का छूटने को हो तो,

ज़िंदगी के लिए सामने आ के,

मौत से दो दो हाथ करने वालो,

धड़कने जो थमने लगे तो,

धड़कनों को ओ चलाने वालो,


खुश रहो, खुश रहो,

सदा सदा खुश खुश रहो,


हो जाए जो कोई यतीम,

रूठे हंसी, हर दिन गमगीन,

छूटे सब खेल खिलौने,

अधूरी रह जाए तालीम,

बेवक्त जो चला जाए,

किसी का जो जीवन साथी,

दिया जैसे बिन बाती,

उठ जाए रब से भी यकीन,

ओ यकीन को बचाने वालो,

ओ मेहरबान हंसी लौटाने वालो,


खुश रहो, खुश रहो,

सदा सदा तुम खुश रहो,


धुंधलाती आंखों को कर दो रोशन,

लड़खड़ाते पांव को दे दो ताकत,

देख सकें फिर से फ़ूल कलियां,

खेले जिन में चल सके वो गलियां,

बोझ सब पे बन जाने से राहत,

ढूंढ के ला दो खोई हुई रियाकत,

ओ खुद मुख्तयारी बचाने वालो,

ओ लाचारी से बचाने वालो,


खुश रहो, खुश रहो,

सदा सदा तुम खुश रहो,


घेर ले जो आ के कोई महामारी,

घरों में कैद अपने दुनिया सारी,

तुम्हीं मुंसिफ, तुम्हीं फिर वकील,

तुम ही से पेशी, तुम ही से अपील,

दिन रात रखो काम जारी,

अपने कंधों पे ले सब की जिम्मेदारी,

ओ हबीबो, ये तबीबो,

सब को जिंदाँ से रिहा करवाने वालो,


खुश रहो, खुश रहो,

सदा सदा तुम खुश रहो|

राहत

एक छोटी सी बच्ची 

जैसे खिलखिला रही थी,


बारिश के पानी के 

से बने छोटे से गड्ढों में,

उछल उछल के

जैसे छपाके लगा रही थी,


अपनी कुर्सी पे बैठे बैठे,

नीम के पेड़ पे डाली

हुई, पींग जोर जोर से 

जैसे झूले जा रही थी,


गीत जो उसको कभी

कोई जवानी में सबसे 

अच्छा लगा होगा,

मन ही मन जैसे वो

गाए जा राह थी,


अपने बच्चों को 

जो गा के लोरियाँ

किया होगा उसने बड़ा,

जेहन में उसके जैसे सब

लौट के आ रहा थी,


बड़ों दिनों के बाद

उन्हें देख के ऐसे लगा

किसी ने छोड़ दिया हो 

गला, और खुल के

वो जैसे सांस ले पा रही थी,


मुरझा सी गई थी

जैसे उन में ज़िंदगी,

आज देख के लगा

के जैसे उनमें फिर से

जान वापिस आ रही थी,


फिकर उनसे चली 

गई हो जैसे कोसों दूर,

उम्मीद उन्हें ज़िंदगी

के लिए फिर से जैसे

नजर आ आ रही थी,


एक अंधेरी तूफानी

खौफनाक, आंधी,

तूफान वाली रात

हो गई हो खत्म,

और दूर क्षितिज पे

सुबह होने जा रही थी,


अच्छा तो नहीं होता

अपने हमदर्दों का

यूं अचानक से 

साथ छूट जाना,

पर उनको सुकून में

देख के अपनी फिकर 

कम सता रही थी,


ज़िंदगी में हसीं

खुशी, सुकून,

चैन, से बढ़ के

और कुछ भी नहीं 

कायनात उनके जरिए,

जैसे मुझे पे भी ये

भेद खोले जा रही थी,


एक छोटी सी बच्ची 

जैसे खिलखिला रही थी।

हयात

हयात सफर के सिवा और कुछ भी नहीं,

आखिर सब की एक दिन तएशुदा यकीनन ही,


बस चलते जाओ कायनात के इस अजूबे में,

आगाज,अंजाम जिसका किसी को जाहिर नहीं,


न उलझना कभी इस पेचीदगी में क्यों है, क्या है,

सालों बर्बाद हुए हैं आया बंदे के हाथ कुछ भी नहीं,


हां बस कह गए हैं कुछ न कुछ सब इसके बारे में,

बना लो तुम भी अपने लिए खूबसूरत ख्याल कोई,


और ये ख्वाब, ये मंजिले, ये मनसूबे सब सराय हैं,

सुकून मिलेगा कभी कही किसी एक में रुक के नहीं,


ये रिवायत, ये रीति रिवाज, जो ठीक लगें तो ठीक,

बेवजह इनके बोझ के तले दबना और झुकना नहीं,


ये मज़हबी, ये सियासती लोगों की दलीलें,

होती अक्सर खुदगर्ज़ी के सिवा कुछ भी नहीं, 


इनको देखते रहना पर जरा थोड़ी दूरी से,

ज्यादा इनके पास आ इस में उलझना नहीं,


ये मोहब्बत, ये चाहत, ये उल्फत, ये रिश्ते नाते,

ये हैं एक बड़ी बुनियाद इसको हमेशा रखना सही,


चलो देखते हैं कल क्या फिजा नया रंग लाती है,

आज के लिए, जितना देखा सीखा उतना ही सही।

तरकीब बताओ

अपने ख्यालों से दूर जाने की तरकीब बताओ,

नहीं मिला उसे भूल जाने की तरकीब बताओ,


कोई कहे, दिल पे न लगे, तरकीब बताओ,

कोई ना कहे, दिल ना टूटे, तरकीब बताओ,


हसरतें जागे ही न दिल में, तरकीब बताओ,

ख़्वाब आए ही न आँखों में, तरकीब बताओ,


हर वक़्त रहे अपनी धुन में, तरकीब बताओ,

मिलें सब से रहे खुश अपने में, तरकीब बताओ!

ख़याल-ए-बातिल

कोई कोई दिन तो 

ऐसे निकल जाता है,

जैसे किताब में आ 

जाए कोई खाली पन्ना,


ना कोई तालुक,

ना कोई रिश्ता मुमकिन,

उसको एक बार

फिर से देखने की तमन्ना,


देर रात में जब सब लोग 

अपने घरों में सो जाते हैं, 

अपनी तालाश में 

सुनसान गलियों में निकलना,


मानते तक नहीं के 

कोई है दुनिया बनाने वाला,

चाहें उससे मिलके,

एक बार उसपे बिगड़ना! 

अपने हुनर से दुनिया को दीवाना बनाइए

किसी के सामने कभी हाथ मत फैलाइए,

अपने हुनर से दुनिया को दीवाना बनाइए,


याद रहे चाहत से पहले अकीदत होती है,

रोज अपने आप को थोड़ा सवाँरते जाइए,


कुछ रहनुमाई, कुछ वक़्त का फेर होता है,

खाब जितने भी टूटें खाब और देखते जाइए,


जो कर गए जो कर रहे हैं वो भी हमीं में से हैं,

इतना तो यकीन और गुमान अपने अंदर लाइए,


इतिहास के पन्नों में कल हमारा भी नाम होगा,

चाँद सितारों से रोज रात शर्त यही लगाइए!

अमल

पड़ लेना,

समझ लेना,

अपना लेना,

तीन अलग अलग 

बातें होती हैं,


एक आँखों में,

दूसरी बातों में,

तीसरी रग-ए-जाँ

में होती है,    


एक काँसा,

दूसरा चाँदी,

तीसरा बेशकीमती  

मोती है, 


पड़ लेता हूँ,

समझ लेता हूँ,

बस यही है 

एक नदामत,

अमल में लाने में 

इतनी देरी 

क्यों रहती है!  

Build it again

Dismantle the world

and build it again,

and if you can, feel

your ancestors’ pain —


the famine, the disease,

the discomfort, the unease,

of the caveman, unlettered,

unsure, unaware, unprepared,

running hither and thither,

clueless and in vain.


And then keep on adding,

layer by layer, one evolution

at a time — the Stone Age,

the Bronze Age, the Iron Age,

the Industrial Revolution,

the Information Age —

while keeping count

of each leap’s gain.


Do this a few times,

each time feeling a bit more,

and you will understand

who has created,

who has built this world —

what is the truth,

what is the myth,

what to leave

and what to hold on,

who is progressive,

who is crazy,

who is a cheat,

who is insane,

and who is sane.

Feeling jaded

My office badge and my own 

condition is almost same,

both have become jaded 

looking for a renewal again,


the simmering,the withering

the insipidness,the hopeleessness,

concerns being heard but unadressed

ah! the feeling of helplessness,


and with no refuge in near sight,

no longer sure to fight or flight,

staring at the mountain of grunt work,

semes like there is no end to plight, 


having put my heart and soul into the things,

does not feel like right to leave,

but then out there could be something better,

heart says why for worn out things greive,


ah! the aching thoughts of uprooting

finding new place,gettting in and settling

ah! the tragic and terrible time,

ah! the hapless and twsited fate of mine. 

ਤੂੰ ਆਪਣੀ ਜ਼ਮੀਨ ਤੇ ਖੁਸ਼ ਰਹਿ ਸ਼ਾਦ ਰਹਿ

 ਤੂੰ ਆਪਣੀ ਜ਼ਮੀਨ ਤੇ ਖੁਸ਼ ਰਹਿ ਸ਼ਾਦ ਰਹਿ,

ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਬਰਬਾਦ ਕਰਨ ਦੇ ਖ਼ਾਬ ਨਾ ਲੈਅ,


ਲੜ ਲੜ ਕੇ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਭਲਾਂ ਕੱਦ ਕੁੱਝ ਲੱਭਿਆ,

ਹੋਏ ਜਿਹੜੇ ਨੁਕਸਾਨ ਓਹਨਾ ਦਾ ਹਿਸਾਬ ਲੈਅ,


ਆਵਾਮ ਤੇਰੀ ਬੁੱਕ ਬੁੱਕ ਹੰਝੂ ਰੋਜ ਰੋਂਦੀ ਆ,

ਦੇਖ ਓਹਨਾ ਦੇ ਦੁਖਾਂ ਨੂੰ ਕਿਤੋਂ ਮਹਿਤਾਬ ਲੈਅ,


ਦੋ ਬਿੱਲੀਆਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਚੋਂ ਖੱਟ ਜਾਂਦੇ ਬਾਂਦਰ,

ਨਹੀਂ ਪੜੀ ਤਾਂ ਤੀਜੀ ਵਾਲੀ ਦੁਬਾਰਾ ਕਿਤਾਬ ਲੈਅ, 


ਹੱਥ ਮਿਲਾ, ਗੱਲ ਲੱਗ ਕੇ ਵਰਤਣ ਦਾ ਯੁੱਗ ਏ,

ਕਰ ਭਲਾ ਮੁਲਕ ਦਾ ਦੁਆਵਾਂ ਤੇ ਸੁਵਾਬ ਲੈਅ!

Let us c

Let us c,

if it is difficult or easy,


is it an insipid dry hostel meal which we must eat,

or is it a delicious delicacy from the Gopal sweets,


if you get in first attempt then bingo, 

else we will do few tries and you will be good to go,

worry not about the city folks who already know,

with little practice everybody can learn how to walk on snow,


loops at first glance always look tedious,

do while of all of them is the most mischevious,

but it is with them beautiful things we create,

long stories in few words we narrate,


ararys sadly somone sadly said must start with zero,

but I tell you they are the real heroes,

keeping the flock of sheep together,

staying in line without being bathered,


pointers at first might seem like walking through hell,

double, triple can make mind wobble and eyes swell,

but trust me sweating on them is worth it,

you can reach places which are inadmissible without it,


and if you are the one who does not like things to repeat,

keeping the house dusted, clean and neat,

functions are your friend to go,

that is the thing they best know,


let us get started with the ride,

with time and luck on your side,

the summit is the beautiful place,

from where you can see the world in new ways.

एक छोटी सी बैठक

एक छोटी सी बैठक है

बहुत बड़े और ऊंचे 

कद वाले लोगों की,

जिनके उधार पे है ये

दुनिया चल रही,


जो अपने कंधों पे

बिठा के दुनियां 

को ऊंचाई पे ले चले,

जिनका चाह के भी कभी

दिया जा सकता भत्ता नहीं,


जो दुनियां में हो के 

सिर्फ दुनिया के लिए जिए,

मानता हूं जिनको मैं

संतो, महंतों, भिक्षुओं से ऊपर

जो छोड़ के निकलते है घर

सिर्फ अपनी मुक्ति के लिए,


जिन्होंने जिज्ञासा को

ही हर घड़ी परम माना,

जिन्होंने सत्य को खोजने

को ही अपना धर्म जाना,

और जो चलते रहे सब त्याग

अकेलेपन की अंधेर गलियों से

आने वाले युगों के सूरज के लिए,


वो पर्वत श्रृंखलाओं से,

आज भी हमारे बीच खड़े है,

और मुझ जैसे लोग

धूल के जैसे उनके पांव में पड़े हैं,

हाथ उठाए हुए, 

झोली फैलाए हुए,

चांद तारों से ये गुजारिश करते हुए,


हमें भी कोई बल दो, बुद्धि दो,

मस्तिष्क में भुजाओं में

हमारे भी वो शक्ति भर दो,

ता के जिनके कुनबे के

हो गए हैं हम चलो 

जन्म से ना सही करम से ही,

उन को और कुछ नहीं,

कर सकें हम फूल ही अर्पण दो।

जाना कहां हैं

 हर कोई जल्दी में है

पर किसी को मालूम 

नहीं जाना कहां हैं,

हर किसी के हाथ में है

तीर कमान पर किसीं को

मालूम नहीं निशाना कहां है,


ये दौलत की भूख,

ये शौहरत की हवस,

लोग कर रहें है सब 

कुछ न कुछ देखा देखी बस,

कोई सोचता नहीं 

जा रहा जमाना कहां है,


दिल दुखता है जो हो रहा 

बहुत कुछ उस में से देख के,

दम घुटता है जब कभी

खुद भी पड़ जाते हैं

जो चल रहा है उसके सामने

मजबूरन घुटने टेकने,

कर लिया है किनारा शायद

इसी लिए, पागल जिसके लिए 

अमूमन सारा जहां है,


ये नहीं हमको के आगे बढ़ना नहीं,

दुनिया के साथ हमको चलना नहीं,

पर ना हो जो सलीका, अदब, तहजीब,

ऊपर से चमक अंदर खाली जो चीज

उसको तो कह नहीं सकते हम ठीक,

चाहे लाख कहे कोई तुमको हो

आता दुनिया से निभाना कहां है,


मैं तो अपने आप को आहिस्ता कर रहा हूं,

ये झूठ ये तिलिस्म ये फरेब ये जालसाजी

से रोज थोड़ा थोड़ा अलहिदा कर रहा हूं,

तय कर रहा हूं अपने मनसूबे अपनी मंजिले,

और उसी तरफ बढ़ रहा हूं मुझे

सच्च में जहां पे होना चाहिए,

मुझे सच्च में जाना जहां है।

दोस्तो

दोस्तो कोई तो राह निकालें, 

ग़ैरों के हाथ ज़िन्दगी दे 

अपने दिन नहीं बदलने वाले,


दोस्तो हमीं तो हैं ये कारखाने 

ये दफ्तर, ये mill, ये फैक्टरी 

चलाने वाले, रातों को अपना 

पसीना बहा कर, तमाम जरूरत 

और सहूलत के सब सामान 

त्यार करने, बनाने वाले,


दोस्तो अब हमें उठना होगा

बढ़ना होगा, दाओ लगाना,

खेल को समझना, परख 

के खेलना, खेल के गिरना, 

गिर के उठना संभलना,

आगे बढ़ के अपने नाम 

का सिक्का चलाना होगा,


दोस्तो चलो एक मुट्ठी 

हो जाएँ, मिलें जो कभी 

बस अपने अपने दुःख 

ही ना रोएं, एक नयी सुबह

के आगाज़ के लिए 

कुछ अपने मनसूबे बनाएं,


और चल पड़ें उन बुलंदिओं

की तरफ, जहाँ तक इन 

बंदिशों में खाब तक न देख पाएं,


यक़ीन मानो दोस्तो हम में

हैं हुनर के हम ये घुटे घुटे 

दिनों से निजात पा के 

अपनी मर्ज़ी की मंजिल 

चुन सकें, पा सकें और 

अपनी मर्ज़ी की ज़िन्दगी जी पाएं!

कुछ न कर सके

आपके लिए फ़िक्र 

के अलावा हम 

कुछ और न कर सके,


आप हमें बेसहारा 

छोड़ के ना जाएँ

चाँद तारों से गुज़ारिश

के सिवा हम कुछ 

और न कर सके,


खुली आंखों से देख 

रहे थे एक हादसा

यकीनन होने को है,


वो जिनकी निगहबानी में 

चलते हैं बेख़ौफ़ 

हम उनकी सरपरस्ती 

खोने को हैं,

    

मैंने आपसे भी

कुछ कुछ मिन्नतें की

और भी जो रास्ते 

मुमकिन थे उनकी 

आपके सामने पेशकश की,


मैंने हुकमरानों को

हमारे खस्ता हालत की 

इतितलाहें की 

कुछ तो निज़ाम को बदलो

लिख लिख के खत 

सिफ़ारिश की मिन्नतें की, 

 

पर हर सदा हर दुहाई 

पत्थरों से टकरा के 

जैसे वापिस लोट आई

ग़ैर मुल्की हो जैसे हम 

नहीं हुई कोई सुनवाई,


और अब के जिस नई 

सुबह के आगाज़ के लिए 

हमने दिन रात एक किया था  

जिन खाबों की तामीर 

के लिए हमने अपनी 

साँसों को मेहनत 

की भट्टी में झोंक दिया था,


वो सब अब जैसे 

दम तोड़ने को हैं

पालने से उतर के 

जिन्होंने अभी चलना 

तक न सीखा था  

साथ मारा छोड़ने को हैं,


और ये अंधेरगर्दी, 

हुक्मरानों की मदमस्ती,

मैं जानता हूँ 

अभी कम नहीं होने वाली

चाहे कितने भी मसीह 

सलीब पे चड़ें

ये दुनिया बदलने नहीं वाली,


इस गम-ग़ाज़ीदा 

सहर को शब् को 

गले लगा, दो आंसू 

बहा हम सो जाएंगे,

फिर अपनी मजबूरियों की 

खातिर कल यहीं आएंगे,


और मुझे मालूम है 

और भी हादसे होंगे 

इसी तरह से आगे भी, 

और ये भी तय लगता है 

तब हम कुछ न कर सकेंगे

फिर वही मिन्नतें गुज़ारिशें 

इस से आगे न बढ़ सकेंगे, 


चलो आप जाएँ 

इस ज़िंदाँ से दूर 

जहाँ तरक्की पसंद 

हुनरमंद लोगों का 

एहतराम हो,

जहाँ उम्मीद से सुबह हो 

जहाँ ख़ुशी से शाम हो,


फ़िक्र न करना हमारे 

खस्ता हालातों की

हमको आते हैं 

अपने रास्ते ढूंढ़ने

और पा ही जाएंगे 

कोई दयार तो 

जहां कदर हो कीमत हो 

हुनर की हयात की 

ख्याल की जज़बात की,


बस रह जाएगा एक 

मलाल तो ये के 

आपके लिए फ़िक्र 

के अलावा हम 

कुछ और न कर सके!

शाम की चाय

शाम की चाय 

ठंडी करके तो 

अक्सर पी है,


पर आज तो 

देर रात तक 

याद ही नहीं रहा, 

एक चुस्की तक 

नहीं ली है,


शायद यही होती है

ज़िन्दगी कारोबारी 

रोज़गार पेशा 

ज़िम्मेदार लोगों की,


यूं ही न हमसे

गिला किया करो सनम!  

Traffic Lights

Just three colours,

just three signs,

a bit of coercion

and fear of fine.


three simple rules,

everybody agrees,

everybody follows,

and no body minds,


people of all class

no caste, no religion

no creed, no colour

everybody in same line,


things moving day and night

smooth, ordered and fine

no conflicts, no fights

everybody with same rights


I say relook at philosophies

the religions and doctrines

and make them simple 

as the traffic lights.

I love parking lines

I love parking lines

such a simple system,

no human to guide

no personnel, to make

sure everybody abides,


day in day out, it 

keeps on working fine

with sensible people

parking the wonder of

mechanical engineering 

straight, and in line,


I wish I can bring, the 

same magic in my plans

systems and designs too

with the things working

smoothly day and night

for years and years

without any worry and woe.

कोई और ज़िन्दगी मिली तो

कोई और ज़िन्दगी मिली तो 

हम भी अपने शोंक पुरे करेंगे,

अब के बार सब फ़र्ज़ चुकता हो जाएँ

शायद इतना ही काफी है!


मुल्क भले ही आज़ाद हो गए हों,

गुलाम बनाना चाहे ही कानून न हो,

पर ये रोटी, कपड़ा, मकान, दुनियादारी,

ज़िम्मेवारी सब ने बाँध रखा है!


देखते हैं दुनिया को सब ठीक लगता है,

झांकते हैं अंदर तो अच्छा नहीं लगता है,

अजीब से धक्के से लगते हैं,

कुछ अंदर से कुछ बाहर से!


और हाँ बस चले जाते हैं,

इसी उम्मीद पे के कोई जादू होगा,

कोई राह निकलेंगे किसी दिन तो,

कोशिशें  हमेशा तो नाकाम न होंगी! 

साथ थे जब तक सब सही था

साथ थे जब तक सब सही था,

बात की जाने की तो 

जैसे कभी रिश्ता ही नहीं था,


क्या क्या नहीं कहा उन्होंने

एक खता के लिए, जैसे किया 

कभी कुछ भी ना सही था,


उन्स की तम्मना तो उनसे कभी भी रही,

पर इस तरह बेइज्जत करेंगे,

हमने कभी सोचा नहीं था,


सुबह शाम जिसका हम परचम लेकर चले,

वही हमारी आबरू मिट्टी में मिला दे,

ऐसे तो पहले देखा नहीं था,


शायद उनका अपना यही असूल है,

जब तक कोई साथ चले तो ठीक,

जब दूर जाए तो ना छोड़ो उसे कहीं का,


हमारी खता की वक्त हमको सजा दे,

बस कभी उनको रोक के इतना पूछे,

क्या इतना संग दिल होना ज्यादा नहीं था?